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हम यहां किसी बड़े सेलेब्रिटी या किसी ऑफिसर की बात नहीं करने जा रहे बल्कि हम आपको बता रहे हैं एक साधारण से टैंकर ड्राइवर के बारे में. एक ऐसा टैंकर ड्राइवर जिसने अपनी ड्यूटी निभाते हुए ना जाने कितने लोगों की जान बचाई होगी. इस शख्स को अपनी ड्यूटी इतनी प्यारी है कि इसने पिछले एक साल से अपनी बच्ची का मुंह तक नहीं देखा. हम यहां बात कर रहे हैं बिहार के रहने वाले शंकर मांझी की.

शंकर पिछले बीस सालों से कर्नाटक के मैसूर में ट्रक चलाने का काम करते हैं. इनके ट्रक पर लदी होती है संजीवनी, जी हां ये अपने ट्रक से ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाते हैं. शंकर के अनुसार इस समय उसकी सबसे ज़्यादा जरूरत इस समाज को है. शंकर की मानें तो उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में ऑक्सीजन की इतनी मांग कभी नहीं देखी और ना ही उन्होंने पहले कभी इतने ट्रिप लगाए थे.

बिहार के रहने वाले शंकर और उनके सह चालक मोहम्मद हकीकत इन दिनों हफ्ते में तीन तीन राउन्ड ट्रिप लगा रहे हैं. उन्हें सप्ताह में तीन दिन मैसूर से कोप्पल तक आन जान करना पड़ता है. आपको बता दें कि मैसूर से कोप्पल की दूरी 450 किमी है तथा यहां तक पहुंचने में 8 घंटे का समय लगता है वहीं दोनों तरफ का देखा जाए तो इन्हें कुल 16 घंटे लगते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि शंकर और उनके साथी इन 16 घंटों का सफर बिना रुके तय करते हैं.

शंकर का मानना है कि कई ज़िंदगियां उस ऑक्सीजन के भरोसे पर होती हैं जिन्हें उन्हें पहुंचाना होता है. 

  • ‘सड़क पर कई तरह के खतरे भी होते हैं, कई बार ट्रक में भी किसी तरह की समस्या आ जाती है लेकिन हमें इस बात का अंदाजा होता है कि ऑक्सीजन पहुंचाने में हुई देरी हुई तो कितनी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं. यही कारण है कि इमरजेंसी के दौरान हम लोग लगातार 8 घंटे गाड़ी चलाते रह जाते हैं. इस दौरान हम चाय पीने के लिए भी नहीं रुकते. हमें तब तक चैन की सांस नहीं आती जब तक हम टैंकर को दोबारा प्लांट तक ना पहुंचा दें.’ 

सबसे पहले है ड्यूटी 

शंकर की एक पांच साल की बेटी और एक बेटा है. वह अपने परिवार से तब से नहीं मिले जब से कोरोना की पहली लहर की शुरुआत हुई. NIE से बात करते हुए शंकर बताते हैं कि जब भी वह फोन पर अपनी बेटी से बात करते हैं तब उनका मन होता है कि उससे मिल आएं लेकिन उनके लिए उनकी ड्यूटी सबसे ज़्यादा जरूरी है. शंकर बताते हैं उन्हें सिर्फ उनकी तनख्वाह ही मिलती है, वह जो जोखिम उठाते हैं या अतिरिक्त काम करते हैं उनके लिए उन्हें किसी तरह का भत्ता नहीं मिलता.

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