आज हम बात करने जा रहे हैं असम के जोराहाट ज़िले में रहने वाली मिशिंग जनजाति से सम्बन्ध रखने वाले जादव की जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से अकेले ही अपने दम पर कीचड़ से भरी हुई भूमि को हरे जंगलों में बदल दिया।
जादव असम के जोरहट के एक गाँव में रहने वाली मिशिंग जन जाति से सम्बंध रखते हैं। जादव को बचपन से ही प्रकृति प्रेमी थे, उन्हें जीव जंतु और पशु पक्षियों से बहुत प्यार था. वर्ष 1979 में असम में तेज बाढ़ आई जिससे कि वहाँ द्वीप के पास में बसी हुई ज्यादातर भूमि खराब हो गई और मैं ज़मीन कीचड़ से लबालब हो गई थी. परंतु 55 वर्षीय जादव ने अपने परिश्रम के बलबूते पर इस ज़मीन को हरे भरे घने जंगल में तब्दील कर दिया।
एक बार की बात है एक दिन जब वे ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित अरुणा सपोरी द्वीप से वापस आ रहे थे, उस समय वे कक्षा 10 में पढ़ते थे. तब उन्होंने देखा की बहुत सारे सांप, ब्रह्मपुत्र नदी के इस बंजर टापू पर मरे हुए थे. चूंकि इस टापू पर कोई पेड़ नहीं था अतः यह सैकड़ों सांप निराश्रित होकर मर गए थे. यह देखकर जादव बहुत दुखी हुए और इस घटना का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा. जब उन्होंने अपने से बड़ों से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है तब उन्हें इसका कारण पता चला कि ऐसा पेड़ ना होने की वज़ह से हुआ है।
पद्म श्री पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया
30 वर्षों की मेहनत के बाद जादव पायेंग ने जो जंगल उगाया वह न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क से भी ज़्यादा बड़ा है. इस जंगल में विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे हैं और कई प्रजातियों के जीव जंतु और पशु पक्षी रहते हैं. जादव के नाम पर ही उनके इस जंगल का नाम “मोलाई फोरेस्ट” रखा गया. उनको इस अद्वितीय कार्य के लिए जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय द्वारा सम्मानित किया गया. इन्डियन इंस्टिट्यूट और फोरेस्ट मेनेजमेंट द्वारा भी उन्हें पुरस्कृत किया गया. इतना ही नहीं जादव पायेंग को भारत का सबसे उच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री देकर भी सम्मानित किया गया।