बिहार (bihar) के रोहतास (Rohtas) की रहने वाली संगीता गुप्ता (Sangita Gupta) के परिवार की एकमात्र कमाई उनकी रेडीमेड दुकान थी. दुर्भाग्यपूर्ण उनकी वह दुकान भी टूट गई जिससे उनके परिवार में आमदनी के सारे रास्ते बंद हो गए. दुकान के टूट जाने से संगीता की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से डगमगा गई. उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने में भी परेशानियाँ होने लगी और एक वक़्त ऐसा भी आया जब संगीता को अपने बेटी की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए अपने सारे गहने भी बेचने पड़ गए. इतना सब कुछ होने के बाद भी वह अपने पथ पर अटल रही।
वर्ष 2012 की बात है, दुख में डूबी संगीता को एक दिन ख़ुशी की हल्की-सी किरण दिखाई पड़ी, जब अख़बार पढ़ने के दौरान उन्होंने मशरुम उत्पादन के बारे में जाना. उनके मन में एक उम्मीद की किरण जगी और उन्होंने इसकी खेती करने के बारे में सोची और इसी उम्मीद के साथ संगीता कृषि अनुसंधान केंद्र तक पहुँच गई, ताकि वह मशरूम उत्पादन से जुड़ी और भी ढेर सारी जानकारियाँ हासिल कर सके और साथ ही कुछ कमाई करके अपने परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक कर सके।
मशरूम की खेती से सम्बंधित सारी जानकारियाँ इकट्ठी करने के बाद संगीता ने शुरुआत में सिर्फ़ 30 बैग के साथ मशरूम की खेती की शुरुआत की और वह अपने इस कार्य में सफल भी हुई. लागत के अनुसार उन्हें अच्छा मुनाफा भी हुआ. ख़ुद से ही प्रेरणा पाकर उन्होंने मशरूम बैठकर संख्या को बढ़ाया और वर्तमान समय में उनके मशरूम बैग की संख्या 500 तक पहुँच गई है।
संगीता अपने इस मशरूम की खेती से हर महीना लगभग 25 से 30 हज़ार रुपए आसानी से कमा लेती हैं. संगीता को कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा भी काफ़ी सहयोग दिया जाता है और यही सहयोग के कारण संगीता अब आचार, लड्डू और पापड़ इत्यादि भी बना रही हैं और एक सशक्त महिला के रूप में उभर कर सामने आ रही हैं।