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आज की कहानी एक ऐसे मजदूर की है जो 11 बार असफलता का स्वाद चखने के बाद आखिर सफलता के शिखर पर पहुंच ही गया।

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आज वह एक सरकारी शिक्षक के पद पर कार्यरत है। आइये जानते है इस मजदूर के संघर्षों के बारें में।

कैलास सैन राज्स्थान के सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ क्षेत्र के गांव बीदासर के रहने वाले हैं।

आज की तारीख़ में लक्ष्मणगढ़ क्षेत्र के पुननी गांव में राजकीय माध्यमिक विद्यालय में संस्कृत के वरिष्ठ शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं।

कैलाश सैन ने 20 वर्ष पहले स्नातक और 13 वर्ष पहले संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त किये हैं। कैलाश इसी वर्ष सरकारी शिक्षक बने हैं।

इन्होंने इसके पहले 11 प्रतियोगी परीक्षाओं में अपना किस्मत आजमाया था, लेकिन असफल रहें।

1-2 नंबर से हर बार असफल हो जातें, मजदूरी भी किए पर हार नहीं माने

कैलाश ने द्वितीय व तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा में असफल होने के बाद भी हार नहीं मानी और असफलता से सीख लेकर अपने कमियों पर लगातार कार्य करते रहें।

हमेशा 1-2 नम्बर से असफल होने की वजह से उनके सामने आर्थिक समस्या खड़ी हो गईं थी। आर्थिक संकट के कारण कैलाश ने राज्स्थान के कई प्राईवेट कम्पनी में नौकरी किया।

इसके अलावा वह खाड़ी देशों में मजदूरी करने भी गयें। ये सब नौकरी के दौरान भी कैलाश ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते रहें। विदेश में 4 वर्ष नौकरी करने के बाद कैलाश वापस गांव लौट आये।

कैलाश ने वर्ष 2018 की रीट दिया, यह उनकी 11वीं परीक्षा थी। इस परीक्षा में भी कैलाश असफल रहे।

11वीं बार हारने के बाद भी कैलाश ने हालत के सामने अपने घुटने नहीं टेके बल्कि वह डटे रहें। इन्होंने फिर से इम्तिहान दिया और वर्ष 2020 में वह शिक्षक बनने में सफलता हासिल किए।

कैलाश को पुननी के स्कूल में पोस्टिंग दिया गया।

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