यह एक ऐसा समुदाय है जो अपने रहने की जगह हमेशा अपनी आश्यकतानुसर बदलते रहता है। साधारणतः इनका स्थान परिवर्तन भोजन की उपलब्धियों पर निर्भर करता है। ऐसे में इस समुदाय के बच्चे अक्सर शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। लेकिन डॉ. ह्रदेश चौधरी ने इन बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है।

डॉ. ह्रदेश चौधरी ताज नगरी आगरा की रहने वाली है जो  एक सोशल एक्टिविस्ट और लेखिका है। ह्रदेश खानाबदोश समुदायों के बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके माता-पिता को भी शिक्षा के प्रति जागरूक करने का काम करती हैं। ह्रदेश केंद्र सरकार के शिक्षिका के रूप में कार्यरत थी, लेकिन नौकरी छोड़कर खानाबदोश जाती के बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और इसे ही अपनी ज़िंदगी का उद्देश्य बना लिया।

ऐसे आया खानाबदोश बच्चों के शिक्षा का ख्याल –

डॉ. ह्रदेश चौधरी (Dr. Hirdesh Chaudhary) केंद्रीय मंत्रालय द्वारा संचालित एक स्कूल की शिक्षिका थी। उस दौरान उन्होंने सड़क किनारे कुछ बच्चों को खेलते हुए देखा, जो बच्चे “गाड़िया लोहार” समुदाय से थे। तब उन्होंने सोचा कि अगर इनकी जिंदगी ऐसी ही चलती रही तो इन्हें अच्छी शिक्षा कभी नहीं मिलेगी। फिर यह समुदाय ऐसे ही भुखमरी और बेरोजगारी का शिकार आगे भी होते रहेगा। शिक्षा पर सबका अधिकार है और इन बच्चों को भी बेहतर शिक्षा मिलनी चाहिए ताकि यह भी कल को बेहतर समाज के निर्माण में अपनी भागीदारी निभा सके। लेकिन Hirdesh के लिए नौकरी के साथ यह कदम उठाना संभव नहीं था जिसके लिए उन्हें नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा।

आराधना संस्था (Aradhna Sanstha) की स्थापना कर बच्चों को पढ़ाने की हुई शुरुआत –

हृदेश (Hirdesh) ने आराधना नामक संस्था की स्थापना की ताकि खानाबदोश समुदाय के बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए स्कूलों में भर्ती होने से पहले पढ़ा सकें। बच्चों के लिए संस्था द्वारा गाड़ी की भी व्यवस्था की गई है। यहां बच्चों को एक साल तक बुनियादी शिक्षा दी जाती है क्योंकि यह ऐसे जगह से आते जहां किसी को शिक्षा का मतलब भी नहीं पता है। उन्हें शिक्षा का महत्त्व समझाने वाला कोई नहीं है। एक साल यहां पढ़ने के बाद यही बच्चे शिक्षा का महत्व समझने लगते है और उनके व्यवहार में काफी बदलाव आ जाता है जिससे वही बच्चे ख़ुद को दूसरे बच्चों के बराबर महसूस करने लगते है। धीरे-धीरे संस्था में बच्चों की संख्या बढ़ती गई। वर्तमान में वहां 200 छात्र है। सभी छात्रों के भोजन, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी आदि सभी चीजों की पूर्ति संस्था द्वारा ही किया जाता है।

चुनौतियों का सामना करना पड़ा

डॉ. ह्रदेश चौधरी के अनुसार बच्चों को स्कूल तक लाने में बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ा। यह सफ़र बिल्कुल भी आसान नहीं था। फुटपाथ के किनारे, झुग्गी – झोपडियों तक जाकर उनके माता – पिता से मिलना, उन्हें शिक्षा का महत्त्व समझाना। कई बार तो वे अपने बच्चे को स्कूल भेजने के लिए राजी भी नहीं होते थे लेकिन धीरे – धीरे बदलाव आया और हृदेश की मेहनत रंग लाई। आज वही माता – पिता अपने ही बच्चों में यह बदलाव देखकर प्रफुल्लित हो जाते है और बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए दिल से डॉ. चौधरी को धन्यवाद कहते है।

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