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आईआईएम (IIM) रांची में बीते हफ्ते रंजीत रामचंद्रन नाम के एक नए असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति हुई। रंजीत रामचंद्रन इसलिए चर्चा में हैं क्योंकि इस मंजिल तक पहुंचने के लिए उन्होंने एक लंबा और संघर्ष से भरा सफर तय किया। एक समय ऐसा था जब नाइट गार्ड की नौकरी कर के रंजीत अपना परिवार चलाते थे।

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रंजीत ने शनिवार को सोशल मीडिया पर एक तस्वीर शेयर की। यह तस्वीर केरल के कासरगोड़ जिले में उनके गांव पनाथुर की थी। तस्वीर में एक झोपड़ी थी और 28 वर्षीय रंजीत ने इसके साथ लिखा था, ‘एक आईआईएम प्रोफेसर का जन्म इस घर में हुआ।’

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इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, रंजीत इससे पहले बेंगलुरु के क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में बीते दो महीने से असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम कर रहे थे। रंजीत कहते हैं, ‘मैं चाहता था कि मेरा जीवन उन युवाओं के लिए प्रेरणा बने जो सफलता पाने के लिए संघर्ष करते हैं। मेरी 12वीं तक पढ़ाई पूरी होने के बाद एक समय ऐसा भी था जब मैंने आगे की पढ़ाई छोड़कर कोई छोटी-मोटी नौकरी कर के परिवार को मदद करने के बारे में सोचा था।’

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रंजीत के पिता रवींद्रन पेशे से टेलर हैं और मां बेबी, मनरेगा मजदूर हैं। रंजीत अपने तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। पूरा परिवार एक छोटी सी झोपड़ी में रहता है, जिसके छत पर पॉलिथीन लगी है और बारिश में इसमें पानी तक टपकता है। 

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कासरगोड़ में अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए रंजीत कहते हैं, ’12वीं के बाद अपने माता-पिता को आर्थिक मदद देने के लिए मैंने नौकरी करनी चाही। मुझे अपने छोटे भाई-बहन को भी मदद करनी थी, जो कि उस समय पढ़ ही रहे थे। मुझे स्थानीय बीएसएनएल टेलीफोन एक्सचेंज में 4 हजार रुपये प्रति महीने की पगार पर नाइट गार्ड की नौकरी मिली। मैं दिन में कॉलेज जाता था और पूरी रात टेलीफोन एक्सचेंज पर रहता था। पांच साल तक में टेलीफोन एक्सचेंज पर ही रहा। एक सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर मेरा काम था कि पावर सप्लाई में कोई रुकावट न आए।’

आईआईटी मद्रास में स्टाइपेंड के तौर पर मिलने वाले पैसों से रंजीत अपना खर्च तो चलाते ही थे, साथ में इसमें से एक हिस्सा बचाकर अपने भाई-बहनों की पढ़ाई पर खर्च करते थे। 

रंजीत चाहते हैं कि वह आईआईएम में एक अच्छे शिक्षक बने। उन्हें अगले 90 दिनों में आईआईएम रांची जॉइन करना है। 

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