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मां-बाप की छांव जिनके साथ होती है उन्हें बहुत किस्मत वाला माना जाता है. माता-पिता बच्चों के जीवन को निखारने में निस्वार्थ भाव से अपना पूरा जीवन लगा देते हैं. ऐसा ही उदाहरण जयपुर के सारंग जिले में देखने को मिला. जहां 55 साल की मीरा देवी ने अपनी पूरी जिंदगी तीन बेटियों का भविष्य बनाने में लगा दी. मीरा देवी के पति की मौत काफी पहले हो चुकी थी. बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने के लिए मीरा घर के कामों को पूरा कर बच्चों की परवरिश करती और घर का खर्च चलाने के लिए मजदूरी करने भी जाती थी.

बच्चों ने भी मां की उम्मीदों को बेकार नहीं जाने दिया. मीरा देवी की तीनों बेटियों ने प्रशासनिक सेवाओं में सफलता हासिल कर विधवा मां के सपनों को साकार कर दिया.
मीरा देवी से बात करने पर वो कहती हैं किस तरह से उन्होंने मजदूरी कर अपनी तीनों बेटियों की पढ़ाई पूरी करवाई. परिवार में ऐसा कोई भी नहीं था जो मीरा देवी के खर्चों को वहन कर सके.

पति की इच्छा थी कि बेटियां बनें अफसर

इसके आगे मीरा देवी कहती हैं कि पति की इच्छा थी कि वो बेटियों को पढ़ा-लिखाकर उनको बड़ा अधिकारी बनाएं. पति की मौत के बाद उनको काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. बेटियों के बड़े होने पर गांव के लोग और रिश्तेदार तीनों बेटियों की शादी के लिए दबाव डालने लगे. लेकिन मीरा देवी ने मन ही मन ठान लिया था कि कुछ भी हो जाए बेटियों को सफल बनाकर ही रहेंगी.

बेटियों को कभी पढ़ाई के लिए नहीं रोका

परिवार की गरीबी को मां ने कभी भी बेटियों की पढ़ाई के बीच आने नहीं दिया. विधवा मीरा देवी की तीनों बेटियां कमला चौधरी, ममता चौधरी और गीता चौधरी ने भी अपने स्वर्गवासी पिता की अंतिम इच्छा को पूरी करने के लिए गांव के एक छोटे से कच्चे मकान में रहते हुए न सिर्फ मन लगाकर पढ़ाई कीं बल्कि उन्होंने लक्ष्य बनाकर दो साल तक जमकर प्रशासनिक सेवा की तैयारी की. उन्होंने UPSC का एग्जाम दिया, लेकिन कुछ नम्बरों से तीनों ही सिलेक्ट नहीं हो सकीं.

इसके बाद तीनों बेटियों ने फिर से प्रयास किया और इस बार एक साथ राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी. इसबार तीनों बहनों ने एकसाथ सफलता हासिल कर ली.

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