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एक छात्र जिसे इंजीनियरिंग करनी थी लेकिन सिस्टम की लापरवाही के कारण जब उसको न्याय नहीं मिला तो उसने सिस्टम बदलने की ठान ली। खूब पढ़ा। दिनभर पढ़ाई में रमा रहा सिर्फ इसलिये एक समय ऐसा आयेगा जब वो गरीबों को, मजलूमों को न्याय दिलाने की स्थिति में होगा। ये कहानी है सूरज कुमार राय की, जिन्होंने 2017 की यूपीएससी परीक्षा में 117वीं रैंक हासिल की।

उनकी कहानी भले ही आपको थोड़ी फिल्मी लगे लेकिन वो बेहद दुखभरी और संघर्षपूर्ण है। बचपन में तो सूरज कुमार ने कभी आइएएस बनने के बारे में सोचा भी नहीं था। लेकिन जब किस्मत ने अपने रंग दिखाये तो सूरज ने दृढ़ निश्चय किया और जो निश्चय किया उसे करके भी दिखाया।

वे बचपन से पढ़ाई में ठीकठाक थे। जब इंजीनियरिंग के फर्स्ट इयर में थे तब उनके पिता की जान ले ली गई। घटना के दो साल बाद भी पुलिस कोर्ट में कुछ ज्यादा सबूत पेश नहीं कर पाई। यही नहीं उनका कहना है कि उन्हें अपने पिता के केस में न्याय भी नहीं मिला। वो जब थाने जाते तो उन्हें घंटों इंतजार करवाया जाता। सूरज ने इसी लाचार सिस्टम को देख खुद एक अफसर बनने का निर्णय लिया और इंजीनियरिंग में अपना करियर बनाने की बजाये ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी की और आज वो एक आईपीएस ऑफिसर हैं।


सूरज उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले हैं। पढ़ाई में अव्वल रहने वाले सूरज को परिवार से काफी सपोर्ट मिला। इसलिए उन्होंने मनचाही पढ़ाई की। उनका रुझान सांइस की तरफ था तो 12वीं उन्होंने इसी से पास की। इसके बाद की शिक्षा सूरज ने इलाहबाद से की। यहां के मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कॉलेज में इन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिये एडमिशन लिया। लेकिन एडमिशन लेने के 1 महीने बाद ही उनके पिता की जान ले ली गई। मामला पुलिस तक पहुंचा लेकिन जब सूरज ने मामले की छानबीन करने में पुलिस को लापरवाही बरतते देखा तो उन्होंने अपने पिता को न्याय मिल पाने की आस भी छोड़ दी।


जब उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली तो मीडिया से बात करते हुये उन्होंने कहा – जब मैं अपने पिता के केस में कभी थाने तो कभी कोर्ट के चक्कर लगा रहा था तब मैंने सरकार की कानून व्यवस्था को बड़े धीमे और लचर रूप को देखा। वो कहते हैं कि मेरे जैसे हजारों लोग कभी थाने तो कभी कोर्ट में मिलते जिन्हें सिर्फ भरमाया ही जाता था। उन्होंने तय किया कि अगर इस व्यवस्था में सुधार लाना है तो सिविल सेवा में आना ही होगा। यहां से उनका लक्ष्य बदल गया।

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