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एक तरफ पूरे देश से वैक्सीन की बरबादी की खबरें आ रही हैं, दूसरी तरफ केरल ने अपने कोटे से ज्यादा वैक्सीन लगा दी हैं बल्कि उसके उसके पास अब भी वैक्सीन रिजर्व में है. यह नामुमकिन लगने वाली उपलब्धि इसलिए संभव हुई, क्योंकि केरल की नर्सों को इस तरह प्रशिक्षित किया गया कि वो वैक्सीन का आखिरी कतरा तक लें.

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वैक्सीन निर्माता 10 डोज की वायल में एक डोज एक्स्ट्रा देते हैं ताकि वेस्टेज के बावजूद पूरी दस डोज लग सकें. केरल में नर्सों ने आमतौर पर एक्स्ट्रा डोज का भी पूरा इस्तेमाल किया. यानि जिस वायल में 10 लोगों को वैक्सीनेट करना पर्याप्त मान लेना चाहिए, वहां उन्होंने एक वायल से 11 लोगों को वैक्सीनेट किया. कोई बर्बादी नहीं होने दी.

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इसके अलावा केरल ने इस दौरान एक उपलब्धि और हासिल की है. कोविड की पहली वेव के दौरान केरल में अपनी जरूरत भर का ऑक्सीजन उत्पादन होता था. आज एक साल के भीतर केरल सरप्लस स्टेट है जो तमिलनाडु, कर्नाटक और गोवा को ऑक्सीजन सप्लाई कर रहा है.

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कहना चाहिए कि केरल में पिन्यारी विजयन की सरकार यूं ही सत्ता में नहीं चुनकर आई है बल्कि उसने जो कुछ किया, उसका फायदा आम आदमी को मिला और जनता ने इसे महसूस भी किया. पिछले एक साल में जब दूसरी सरकारें कोरोना की जगह दूसरे इवेंट्स में बिजी थीं तब केरल आने वाली विपदा से निबटने की तैयारी कर रहा था.
मोदी ने भी केरल की तारीफ की

यहां तक केरल की वैक्सीन की बर्बादी रोकने और इसके इस्तेमाल का नया रिकॉर्ड बनाने की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की. ये कोई साधारण बात नहीं है. उन्होंने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व वाले राज्य के स्वास्थ्यकर्मियों की काफ़ी प्रशंसा की तो इसलिए क्योंकि उन्होंने कोरोना वैक्सीन के नुक़सान को कम किया है.

केरल में 00 फीसदी बर्बादी का आंकड़ा

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वैक्सीन के 10 फ़ीसदी तक व्यर्थ होने को लेकर छूट दी हुई है. तमिलनाडु जैसे राज्यों में इसके व्यर्थ होने की दर 8.83% और लक्षद्वीप में यह रिकॉर्ड रूप से 9.76% है. ऐसी ही या इससे ज्यादा बर्बादी के आंकड़े दूसरे राज्यों के भी हैं. लेकिन केरल की बर्बादी का आंकड़ा 00 फीसदी है.

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