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बिहार के दरभंगा के बिरौल अनुमंडल मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर दूर कमला नदी के नोअनिया घाट पर बने चचरी पुल से ही लोग आवाजाही करने के लिए विवश हैं। करीब आधा दर्जन गांवों की एक से डेढ़ लाख की आबादी की जिंदगी इसी चचरी पुल के सहारे कटती है। बाढ़ के आने पर इस पुल के टूट जाने या पानी के ओवर फ्लो करने पर लोग नाव के सहारे आवागमन करते हैं। यह क्षेत्र कुशेश्वरस्थान विधान सभा क्षेत्र में पड़ता है। सघन आबादी के बावजूद स्थायी पुल का निर्माण नहीं होने से लोगों में आक्रोश है।

आपको बता दे की यहा पुल नहीं बनने पर कुछ लोगों ने मिलकर 2 लाख की लागत से इस चचरी पुल का निर्माण करवाया। हर साल बाढ़ में बांस का बना यह पुल ध्वस्त हो जाता है। बाढ़ जाने के बाद इस चचरी पुल की मरम्मत कर फिर से चालू किया जाता है। लदहो गांव के लोगों को बाढ़ के समय लगभग 5 किलोमीटर दूर पोखराम गांव होते हुए लगभग 10 किलोमीटर की दूरी तय कर मार्केटिंग करने के लिए सुपौल बाजार जाना पड़ता है। इस चचरी पुल से बलिया, उसरार, लदहो, बुआरी, चनबारा, बलहा, बेंक, पोखराम आदि गांवों के लोग आवागमन करते हैं।

आने-जाने वाले लोगों से शुल्क वसूलने के लिए है कार्यालय : मीडिया रिपोर्ट की माने तो उसरार और लदहो चचरी पुल पार करने वाले राहगीरों से शुल्क वसूलने के लिए कार्यालय खुला है। मोटरसाइकिल सवार को 20 रुपए, साईकिल सवार से 10 रुपए एवं पैदल चलने वालों से पांच रुपए लिया जाता है। इस पैसे से खराब होने पर पुल की मरम्मत की जाती है। इससे प्रतिदिन लगभग प्रतिदिन 40 से 50 बाइक सवार व अन्य राहगीर गुजरते हैं।

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