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समाज में जब तक जात-पात, ऊंच-नीच और भेद-भाव बना रहेगा, तब तक समाज का उत्थान संभव नहीं है। इंसान इसी में उलझ कर रह जाएगा। कुछ हद तक यह बात तो सही है “अगर पेड़ का जड़ मजबूत होगा तो तना भी मजबूत ही होगा।” लेकिन एक सच यह भी है कि हर किसी को यह मजबूत जड़ विरासत में नहीं मिलती।

अच्छी बात यह है कि हमारे देश के युवा अपने दम पर भी ख़ुद को इस काबिल बना लेते हैं कि आने वाले युवा पीढ़ी को इनका उदाहरण दिया जाता है। अशोक खाड़े (Ashok Khade) को भी इन मुश्किलों से गुजरना पड़ा क्योंकि उनके पिता पेशे से मोची और माँ खेतों में काम करने वाली दिहाड़ी मज़दूर थी। लेकिन निचले तबके का होने के बावजूद उन्हें यह अच्छे से पता था कि वह शिक्षा के जरिए ही अपने बेटे का भविष्य बदल सकते हैं और यही सहयोग था कि अशोक ने आज ख़ुद की कंपनी शुरू कर दी है जिसने लगभग 4500 लोगों को रोजगार दिया है। अब उनकी कंपनी सलाना 500 करोड़ रुपए का कारोबार करती है।

सफलता के पीछे की कहानी कुछ इस कदर है कि इनके पिता मोची थे और मां जीवन-यापन के लिए देहाड़ी मजदूरी किया करती थी। तो आईये पढतें हैं इनकी सक्सेस स्टोरी वैसे तो अशोक का जन्म महाराष्ट्र के सांगली ज़िले के पेड गाँव में हुआ था। उन्होंने गाँव से ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। उनका जन्म एक दलित  परिवार में हुआ था, जिनका पारंपरिक काम मृत जानवरों की खाल उतारना था। 6 बच्चों के परिवार का भरन पोषण काफ़ी मुश्किल से चलता था। कभी-कभी तो भूखे पेट ही सोना पड़ता था। इनके परिवार को समाज में भेदभाव से लेकर अवसरों की कमी तक का सामना करना पड़ा।

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