पटना के नजदीक एक गांव में शनिवार को अनोखा विवाह संपन्न हुआ। गांव वालों की मौजूदगी में पंडित ने पूरे विधि-विधान के साथ शादी संपन्न कराई। मटकोर से लेकर धितधड़ी और सिंदूर दान सबकुछ पंचरत्न विवाह पद्धति के बीच कराया गया। मानसून की पहली बारिश के बीच धनरुआ प्रखंड की निमड़ा गांव में इस अनोखी शादी का गवाह सैंकड़ों महिला-पुरुष बने। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि विवाह के लिए पहले से विवाहित जोड़े को मंडप में बैठाया गया और असल में शादी गांव में मौजूद बरगद के एक पेड़ और एक कुएं के बीच हुई। वैदिक पद्धति से दोनों परिणय सूत्र में बंध गए। आचार्य अनुज पांडेय ने पूरे विधि-विधान के साथ दोनों के बीच शादी करवाई।
विदाई के समय छलक आए लोगों के आंसू
ग्रामीणों ने बताया कि वट वृक्ष अर्थात वर पक्ष की ओर से प्रमोद कुमार और उनकी पत्नी तथा कन्या पक्ष की ओर से अर्थात कुआं की से रामाधार सिंह व उनकी पत्नी ने धृतधड़ी की रस्म अदायगी की। इस बीच महिलाएं विवाह गीत गाकर रस्मों को आगे बढ़ा रही थीं। सिंदूरदान ओर विदाई के बीच कुछ पल ऐसे आये जब लगा पूरा माहौल भक्तिमय हो उठा, विदाई के समय लोगों के आंसू भी छलके। गठबंधन के वक्त ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रकृति के दो पालन हार आपस में मिलने को आतुर हैं। करीब तीन घंटे में शादी की पूरी रस्म संपन्न हुई।
इस तरह की शादी की क्या है मान्यता
आचार्य अनुज पांडे बताते हैं धार्मिक ग्रन्थों में इस तरह की शादी का संक्षेप में वर्णन है। तर्क की कसौटी पर भी इसके कई मायने हैं। बरगद पेड़ लंबे समय तक जीने वाले वृक्ष हैं, वही कुआं प्रकृति की पटरानी है। महिलाएं वट वृक्ष के समक्ष पूजा कर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं, वही कुआं इंद्र की सबसे करीब माना जाता है। मान्यता यह भी है कि जबतक बरगद की शादी नहीं होती, प्रकृति के ये दो पालनहार जबतक आपस में प्रणय सूत्र में नहीं बंधते, तब तक वैसे वट वृक्ष के समीप शादी के समय होने वाले पत्ते कटाई की रस्म अदा नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक शादी है और लंबे समय तक इस वट वृक्ष ओर कुआं दोनों को धार्मिक अनुष्ठानों में लोग प्रयोग कर सकेंगे।