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झारखंड हाईकोर्ट से आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद को जमानत मिलने के बाद आरजेडी समेत सभी विपक्षी दल उत्साहित हैं. राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे हैं कि उनके जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद क्या बिहार समेत देश की सियासी हवा में बदलाव आएगा. कोरोना के संक्रमण काल में जेल से बाहर आ रहे लालू प्रसाद के चीजें आसान नहीं होगी. लालू प्रसाद की बिगड़ती सेहत के बाद कम-से-कम ये कहा जा सकता है. कोरोना काल में राजनीतिक मेल-मिलाप और गतिविधियां ठप पड़ गई हैं. लालू प्रसाद को कई जेल मैन्युअल का पालन भी करना है.

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हालांकि उनके जेल से बाहर आने के बाद उनके परिवार को नैतिक बल हासिल होगा. सत्ता पक्ष के खिलाफ लगातार आक्रामक तेजस्वी और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं के हमलों को नई धार मिलेगी. पिछले तीन दशक से लालू प्रसाद बिहार की राजनीति के धुरी रहें, लेकिन तब लालू प्रसाद की सेहत उनका साथ निभा रही थी.

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आसान नहीं था सफर
साल 1990 में जब लालू प्रसाद यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब किसी को यह अहसास नहीं था कि वे बिहार के धुरंधरों की बीच सबसे बड़े करिश्माई नेता बनकर उभरेंगे और लंबे समय तक बिहार और देश की राजनीति को प्रभावित करेंगे. लालू ने अपनी असाधारण राजनीतिक सूझबूझ के साथ बड़े-बड़े धुरंधरों को धूल चटा दी. धीरे-धीरे उत्तर भारत की राजनीति के चमकदार नेता बनकर उभरे. 1990 के बाद किसी भी चुनाव को उठाकर देख लिजिए,बिहार की राजनीति उनके इर्द-गिर्द हीं घूम रही है.

2015 में बिहार में रोका नरेंद्र मोदी का रथ
देश में नरेंद्र मोदी के उभार के बाद राजनीतिक हाशिए पर पड़े लालू ने समाजवादी धड़ों को साथ लाने की पहल शुरू कर दी, लेकिन सपा के कदम पीछे खींचते हीं मामला खटाई में पड़ गया. लेकिन लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार,शरद यादव और कांग्रेस को लेकर 2015 के विधान सभा चुनाव से पहले महागठबंधन की नींव डाल दी. एनडीए मोदी लहर पर सवार बिहार में विरोधी महागठबंधन को कड़ी चुनौती दे रही थी. तभी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी बयान ने मुकाबले को एकतरफा कर दिया.

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