आज की कहानी सीमा राव के जज्बे की कहानी है। जिनमें देश के लिए बेइंतहा समर्पण है और अपने काम के लिए अपार जूनून!
सीमा राव 7 डिग्री ब्लेक बेल्ट धारी मिलिटरी मार्शल आर्ट में भारत की एकमात्र कमांडो ट्रेनर हैं। सीमा राव पिछले बीस साल से भारतीय सेना में ‘कमांडो ट्रेनिंग’ दे रही हैं जिसके बदले वे कुछ नहीं लेतीं।सीमा कॉम्बेट शूटिंग इंस्ट्रक्टर, फायर फाइटर, स्कूबा ड्राइवर, रॉक क्लाइम्बिंग में एचएमआई मेडलिस्ट होने के साथ-साथ मिसेज इंडिया वर्ल्ड की फाइनलिस्ट भी रही हैं।
इतना ही नहीं सीमा विश्व की मात्र उन दस महिलाओं में शामिल हैं जो अनोखी मार्शल आर्ट ‘जीत कुने दो’ से प्रमाणित हैं। यह अनोखी मार्शल आर्ट 1960 में ब्रूस ली ने ईजाद की थी।
सीमा राव स्वतंत्रता सेनानी प्रो. रमाकांत सिनारी की बेटी हैं। प्रो. रमाकांत ने पुर्तगालियों से गोआ को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी। देशभक्त सीमा स्वतंत्रता संघर्ष की वीरगाथाएं सुन-सुन कर बड़ी हुई,जिनसे प्रेरित होकर वे भी देश की सेवा करने का मन बना चुकी थीं। उनके सपने को तब पंख लगे जब वे मेजर दीपक राव से मिलीं। मेजर दीपक राव 12 साल की उम्र से मार्शल आर्ट सीख रहे थे और उन्होंने ही सीमा को इस जुनूनी आर्ट से रूबरू कराया। मेजर दीपक राव को 2011 में महेंद्र सिंह धोनी और अभिनव बिंद्रा के साथ भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय सेना में 20 साल की सेवा के लिए रैंक अवार्ड मिला है।
सीमा और मेजर दीपक शर्मा ने एक दूसरे को जीवनसाथी बना लिया। शादी के बाद दोनों ने मार्शल आर्ट, शूटिंग और शस्त्र रक्षा में कई विधाएं सीखीं और लगातार खुद को मांझते रहे। इसके साथ-साथ उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में शिक्षा भी पूरी की। डॉक्टरी की पढाई पूरी करने के बाद दीपक ने कानून की प्रतिष्ठित डिग्री CLET लॉ इनफोर्समेंट सर्टिफिकेशन हासिल की और सीमा ने क्राइसिस मेनेजमेंट में एमबीए किया।
खुद को बेहतरीन कौशल से लैस करने के बाद उन्होंने सोचना शुरू किया कि अब वे कैसे देश की सेवा कर सकते हैं। काफी मंथन के बाद उन्होंने निश्चय किया कि वे अब से भारतीय सेना के जवानों को बिना किसी तनख्वाह के प्रशिक्षित करेंगे।
सेना के जवानों को प्रशिक्षित करने की प्रेरणा के पीछे दो अहम कारण रहे। पहली तो ये इच्छा कि उन जवानों को सिखाया जाए जो भारत की रक्षा में जी जान से जुटे रहते हैं, और दूसरी उनकी मार्शल आर्ट और कोम्बेट की प्रेक्टिस में निरंतर लगे रहने की अनिवार्य जरूरत रही। इसलिए 1996 में उन्होंने आर्मी, नेवी, सीमा सुरक्षा बल और एनएसजी के सेना प्रमुखों के सामने प्रस्ताव रखा कि वे निशुल्क सेना के जवानों को प्रशिक्षण देना चाहते हैं। सेना प्रमुख उनके इस समर्पण को देखकर प्रभावित हुए और उन्होंने ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरु करवा दिया। तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। और सीमा ने एक अतिथि प्रशिक्षक के रूप में सेना में 20 वर्ष पूरे कर लिए हैं।
सीमा का सफर जितना रोमांचक है उतना ही मुश्किल भी रहा। उन्होंने पैसे की तंगी भी झेली लेकिन अपने निशुल्क प्रशिक्षण के फैसले पर अडिग रही। गर्मी, बारिश और गला देने वाली सर्द जगहों पर भी सीमा लगातार सेना के प्रशिक्षण केन्द्रों में यात्राएं करती रहती हैं। इसी कारण वे अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सकीं।
अपने लगातार ट्रेनिग कार्यक्रम और प्रशिक्षण के प्रति समर्पण की वजह से सीमा ने स्वयं गर्भवती न होने का फैसला किया तथा एक बच्ची को गोद लिया। वे सेना के प्रशिक्षण में रुकावट नहीं चाहतीं थी।इतना ही नहीं प्रशिक्षण के दौरान सीमा को तमाम दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। कई बार फ्रेक्चर होने के साथ-साथ एक बार तो सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से उनकी याददाश्त ही चली गयी, उस दौरान सीमा अपने पति के सिवा किसी को नहीं पहचान पा रही थीं। गंभीर इलाज के कई महीनों बाद उनकी याददाश्त वापस आई। लेकिन देश की सेवा का जज्बा कभी कम नहीं हुआ।