‘प्लास्टिक-मुक्त’ समाज की दिशा में उड़ीसा के केंदुझर जिला प्रशासन ने बहुत ही अहम कदम उठाया है। कुछ समय पहले ही, प्रशासन ने फ़ैसला किया है कि अब से किसी भी प्रशासनिक मीटिंग्स, सेमिनार और वर्कशॉप आदि के दौरान खाने-पीने के लिए प्लास्टिक के कप, गिलास या फिर प्लेट्स आदि का इस्तेमाल नहीं होगा।
बल्कि प्रशासन ने इसकी जगह ‘साल’ के पत्तों से बनने वाले इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने का निर्णय किया है। किसी भी मीटिंग या अन्य किसी आयोजन के दौरान चाय और स्नैक्स पेपर कप और साल के पत्तों से बनी प्लेट और दोने/कटोरी में सर्व किये जायेंगें।
यह पहल यहाँ के जिला अधिकारी, आशीष ठाकरे ने अपनी टीम के साथ मिलकर शुरू की है। उन्होंने बताया,
“हमारा उद्देश्य प्लास्टिक-फ्री पर्यावरण है। हमने पहल की है कि प्रशासन के कामों में से सिंगल-यूज प्लास्टिक का प्रयोग बिल्कुल बंद हो जाये। इसलिए साल के पत्तों से बनी प्लेट्स, जिन्हें यहाँ ‘खली पत्र’ कहते हैं, प्लास्टिक का एक बेहतर विकल्प हैं।”
साल के पत्तों से बनी प्लेट्स या फिर दोने आदि न सिर्फ़ इको-फ्रेंडली हैं बल्कि उड़ीसा के इन आदिवासी इलाकों की संस्कृति का हिस्सा भी हैं। जब भी गाँव में कोई बड़ा आयोजन होता है तो अक्सर खाना, खलीपत्र पर ही परोसा जाता है। इसके साथ, सब्ज़ी के लिए मिट्टी या फिर खली के ही बने दोनों का इस्तेमाल होता है और पानी कुल्हड़ में दिया जाता है।
इस तरह से कितना भी बड़ा आयोजन हो, लेकिन कोई कूड़ा-कचरा नहीं होता था। पर पिछले कई सालों में प्लास्टिक के प्रोडक्ट इस्तेमाल होने के कारण तस्वीर बिल्कुल ही बदल गयी थी। लेकिन अब जिला प्रशासन की यह पहल न सिर्फ़ प्लास्टिक-फ्री पर्यावरण की दिशा में है, बल्कि यह इस इलाके की संस्कृति को सहेजने का भी एक ज़रिया है।
इसके अलावा, आईएएस ठाकरे बताते हैं कि इस योजना से उनका एक और उद्देश्य पूरा होगा और वह है यहाँ के आदिवासी लोगों के लिए रोज़गार के साधन बनाना।
“जब हमने खली पत्र पर अपनी योजना बनायीं तो हमें यह भी पता चला कि गांवों के बहुत से स्वयं-सहायता समूह साल के पत्तों के प्रोडक्ट्स बनाते हैं। हमने कार्यालय के लिए भी प्रोडक्ट्स बनाने का ऑर्डर उन्हें ही देने का निर्णय किया।”
क्योंकि यहाँ के आदिवासी लोगों के लिए साल की पत्तल, दोने या फिर कप आदि बनाना, उनका प्राथमिक रोज़गार है। यदि उन्हें उनके इलाके में ही इस तरह से ऑर्डर मिल जाये तो इससे उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी।
इस योजना पर लगभग एक महीने पहले ही ऑफिसियल सर्कुलर जारी कर दिया गया था और साथ ही, सभी प्रशासनिक स्टाफ को खुद अपने पानी की बोतलें लाने के लिए भी कहा गया है। इस योजना के ज़रिए लगभग 500 आदिवासी महिलाओं को रोज़गार देने का लक्ष्य है।