“पर्यावरण के अनुकूल जीवन जीने से हम अपने जीवन और स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं। पर्यावरण कोई अलग चीज नहीं है जिसके लिए हमें कुछ अलग करना है बल्कि हम सब पर्यावरण का हिस्सा हैं। इसलिए हम जो भी करते हैं, वह हमारे अपने लिए होता है। अगर हमारा पर्यावरण स्वस्थ होगा तो हम भी स्वस्थ रहेंगे,” यह कहना है देहरादून की रहने वाली 47 वर्षीया अनीशा मदान का। 

पिछले 12-13 सालों से पर्यावरण के अनुकूल जीवन जीने के लिए प्रयासरत अनीशा पेशे से ग्राफिक डिज़ाइनर और कंटेंट डेवलपर हैं। अनीशा पर्यावरण से संबंधित अभियानों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावशाली है उनकी और उनके परिवार की जीवनशैली। 

छोटे-छोटे बदलावों से शुरुआत करने वाली अनीशा आज गर्व से अपनी जीवनशैली के बारे में बताती हैं। साथ ही, लोगों को प्रेरित भी करती हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने इस सफर के बारे में बताया। 

अनीशा कहती हैं, “मैंने फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई की है। लेकिन जब इस इंडस्ट्री में नौकरी शुरू की तो समझ में आया कि यह पर्यावरण के लिए कितना हानिकारक है। कुछ समय तक फैशन इंडस्ट्री में काम करके, मैं बतौर ग्राफ़िक डिज़ाइनर काम करने लगी। अपने काम के दौरान मैंने देखा ही था कि हम पर्यावरण को कितना प्रदूषित करते हैं। इसी बीच 2005 में मुझे पता चला कि मुझे ‘एंडोमेट्रिओसिस‘ है। जब मैं इस बीमारी का इलाज करवा रही थी तो जाना कि कैसे मेकअप, ब्लीच, पेस्टिसाइड, सैनिटरी नैपकिन आदि हमारे लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं।” 

उनका कहना है कि पहले वह सिर्फ सोचती थीं कि वह प्रकृति के अनुकूल काम करेंगी। लेकिन अपनी इस बीमारी के बाद उन्होंने सही मायनों में काम करना शुरू किया। “मैंने छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देना शुरू किया जैसे कचरे को अलग-अलग करना। गीले कचरे को बाहर न फेंक कर, इससे खाद बनाना। सूखे कचरे को रीसायकल के लिए देना। जितना हो सके उतना इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को कम करना। साथ ही, मैंने अपने परिवार के खान-पान पर भी ध्यान दिया। मैंने कोशिश की कि हम ज्यादा से ज्यादा शुद्ध और जैविक चीजें खाएं,” उन्होंने बताया। 

छोटी-छोटी चीजें, जो अनीशा करतीं हैं

  • यात्रा करते समय, अपने साथ बर्तन लेकर चलती हैं ताकि कुछ प्लास्टिक क्रॉकरी में न लेना पड़े। 
  • हर तरह के काम के लिए वह प्लास्टिक या पॉलीथिन की जगह सूती बैग लेती हैं। 
  • घर में प्लास्टिक और रसायनों का प्रयोग एकदम न के बराबर है। बाल धोने के लिए शैम्पू बार का इस्तेमाल करती हैं। बांस के टूथब्रश और लकड़ी की कंघी के अलावा, चेहरा धोने के लिए वह घर पर ही उबटन बनाती हैं। 
  • घर में जो भी पेपर आता है उसे वह अपसायकल या रीसायकल करती हैं। जैसे पुराने बिल्स को इकट्ठा करके नोटपैड की तरह इस्तेमाल करना। 
  • पीरियड्स में वह कपड़े के सेनेटरी नैपकिन या मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करती हैं। 
  • घर की साफ-सफाई के लिए वह बायोएंजाइम बनाती हैं ताकि हानिककारक रसायनयुक्त क्लीनर्स घर में न आएं। 
  • सूखी हुई तोरई से लूफा बनाती हैं। 
  • रसोई में भी कांच और स्टील के बर्तन इस्तेमाल होते हैं। 
  • घर में लगभग सभी फर्नीचर सेकंड-हैंड और बांस व सरकंडे का बना हुआ है। 

खुद उगाते हैं जैविक साग-सब्जियां 

अनीशा ने बताया कि उन्होंने घर में ही अपना बगीचा लगाया हुआ है। इस बगीचे में वह तरह-तरह के पेड़-पौधे लगाती हैं। वह कहतीं हैं, “हमारे घर में कोई भी पत्तेदार हरी सब्जी जैसे पालक, मेथी, पोइ साग, चौलाई, आदि बाजार से नहीं आती है। इसके अलावा, चार-छह महीने के लिए लहसुन भी हम अपने घर में लगा लेते हैं। गर्मियों और सर्दियों में मौसम की सभी सब्जियां लगाते हैं ताकि उस समय हमें ज्यादा सब्जियां बाहर से न खरीदनी पड़े।” 

Raushan Kumar is known for his fearless and bold journalism. Along with this, Raushan Kumar is also the Editor in Chief of apanabihar.com. Who has been contributing in the field of journalism for almost 5 years.