बाहुबली नेता और पूर्व सांसद शाहबुद्दीन की कोरोना से मौत के बाद जेल में बंद एक और बाहुबली नेता के परिजनों को डर सताने लगा है। हालांकि उन्हें कोरोना नहीं हुआ है, लेकिन उनके परिवार वालों को डर है कि इस संक्रमण से कहीं वह भी न ग्रसित हो जाएं। हम बात कर रहे हैं बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन की। आनंद मोहन सहरसा जेल में बंद हैं। संक्रमण के डर को देखते हुए उनके परिवार वाले सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला देकर कह रहे हैं कि आनंद मोहन ने 14 साल की सजा काट ली है, अब उन्हें रिहा कर देना चाहिए।
क्या कहती हैं पत्नी लवली आनंद
आनंद मोहन की पत्नी और पूर्व सांसद लवली आनंद ने तर्क दिया है कि वो 65 साल के हो गए हैं। उनकी सजा की मियाद भी पूरी हो चुकी है। इस आधार पर भी रिहा किया जाए क्योंकि आनंद मोहन को जेल में कोरोना हो सकता है। लवली आनंद कहती हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि आनंद मोहन उनके मित्र हैं और वह जल्द जेल से बाहर आएंगे। लेकिन इस पर कोई कवायद नहीं की जा रही है। आनंद मोहन बेकसूर हैं, उन्हें बेवजह 14 साल से जेल में रखा गया है। सरकार को अब उन्हें रिहा कर देना चाहिए।
पुत्र चेतन आनंद ने मुख्यमंत्री से किया आग्रह
आनंद मोहन के पुत्र और RJD विधायक चेतन आनंद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आग्रह किया है कि उनके पिता को मानवता और कोरोना संक्रमण को देखते हुए रिहा कर देना चाहिए। साथ ही चेतन आनंद कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आधार पर भी मेरे पिता को यह हक मिलना चाहिए कि वह जेल से बाहर अपने परिवार के साथ रहें।
चेतन आनंद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को याद दिलाया कि उन्होंने महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर यह घोषणा की थी कि आनंद मोहन जल्द जेल से बाहर होंगे। जब पूरे विश्व में कोरोना महामारी चल रही है, ऐसे में मेरे 65 वर्षीय पिता को जेल में रखना अन्याय है।
गोपालगंज DM हत्याकांड में काट रहे सजा
सहरसा जेल में सजा काट रहे आनंद मोहन पर कई मामलों में आरोप लगे। अधिकतर मामले या तो हटा दिए गए या वो बरी हो गए। लेकिन 1994 में एक मामला ऐसा आया, जिसने न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया। 5 दिसंबर 1994 को गोपालगंज के DM जी कृष्णैया की भीड़ ने पिटाई की और गोली मारकर हत्या कर दी गई। कहा जाता है कि इस भीड़ को आनंद मोहन ने उकसाया था।
इस मामले में आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया था। साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई। हालांकि 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था। साल 2012 में आनन्द मोहन ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। अब उनके परिवार वाले कोरोना का हवाला देते हुए उन्हें रिहा करने की मांग कर रहे हैं।
साभार – dainikbhaskar