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बिहार में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर अब तक स्थिति साफ नहीं हो पाई है. कोरोना संकट के दौर में एक ओर जहां चुनाव को लेकर संशय के बादल मंडरा रहे हैं, वहीं पंचायत चुनाव में देरी होने पर प्रदेश के पंचायती राज सरकार को लेकर वैधानिक संकट भी उत्पन्न हो सकते हैं. बता दें कि प्रदेश में जिला परिषद सदस्य, मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य, पंच और वार्ड सदस्यों के करीब ढाई लाख पदों के लिए बिहार में चुनाव होना है. सभी पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल 15 जून को समाप्त हो रहा है. ऐसे में अगर 15 जून से पहले चुनाव नहीं होने की स्थिति में मुखिया-प्रमुख समेत सभी पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकार छिन जाएंगे.

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ऐसी खबरें हैं कि कोरोना संकट के इस समय में शायद चुनाव टाले भी जा सकते हैं. अगर पंचायत चुनाव समय पर नहीं करवाए गए तो इस स्थिति में राज्य सरकार के अधिकारियों को पंचायत प्रतिनिधियों की जिम्मेदारियां देने की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी. ऐसे में इसके लिए नीतीश कुमार सरकार पंचायती राज अधिनियम 2006 में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन करना पड़ेगा. बताया जा रहा है कि राज्य सरकार ऐसी स्थिति की तैयारी में भी जुट गई है.

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दरअसल, चुनाव आयोग पूरी तैयारी के बावजूद  कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण समय पर पंचायत चुनाव की संभावना अब नहीं है. बता दें कि इससे पहले राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव पर विचार करने के लिए बीते 21 अप्रैल को 15 दिनों का समय लिया था. तब कहा गया था कि इसकी समीक्षा की जाएगी, फिर फैसला लिया जाएगा. उस वक्त चुनाव आयोग की सोच यही थी कि इन दिनों में कोरोना का कहर कम होगा, लेकिन तब से अब तक कोरोना की रफ्तार कम होने के बदले बढ़ गई है और बिहार में कोरोना के सक्रिय मरीजों की संख्या 1 लाख के पार पहुंच गई है.

ऐसे में बिहार राज्य निर्वाचन आयोग भी अब लगभग यह मान चुका है कि हालात जल्‍द सुधरने वाले नहीं हैं. जाहिर है ऐसे में चुनाव की तारीखों का ऐलान भी संभव नहीं हो पाएगा. चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार वह अधिक से अधिक 20 मई तक इंतजार कर सकता है. 20 मई तक कोरोना संक्रमण की दर में भारी गिरावट आई तो चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है. तब मात्र दो या तीन चरणों में मतदान कराए जा सकते हैं. लेकिन, अब लगता है कि 20 मई के बाद भी इलेक्शन कमीशन चुनाव कराने का खतरा नहीं मोल नहीं लेगा.

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