आज भी समाज में ऐसे लोग हैं जो लडकियों के अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के खिलाफ रहते हैं। अभी भी लडकियों को तरह-तरह के ताने सुनने पड़ते है तथा कई प्रकार के बन्दिशो में भी रखा जाता है। परंतु इन सभी बाधाओं को पार कर लड़कियां, महिलाएं अपने लक्ष्य को प्राप्त कर रही हैं, तथा यह साबित कर रही हैं कि वे गंवार या सिर्फ चूल्हा-चौका के लिये नहीं बनी है। वह अन्य क्षेत्रों में भी अपनी योग्यता से सफलता हासिल कर सकती हैं।
आज हम आपकों ऐसी ही एक महिला IPS के बारें में बताने जा रहें हैं जिन्होंने उपर्युक्त सभी बेबुनियादी विचारधारा को बदल दी। एक ऐसी आईपीएस महिला जिसने बचपन से खेती-बाड़ी का कार्य करने से लेकर शादी के लिये ताने सुनने के बाद भी IPS बनकर अन्य दूसरे लड़कियों के लिये एक मिसाल पेश की है।
आइये जानतें है उस IPS महिला के बारें में।
आईपीएस सरोज (Saroj) राजस्थान (Rajasthan) के झुंझनू जिले के बुधानिया गांव की रहनेवाली हैं। वह जब 3 वर्ष की थी तब उनके पिता सेना से रिटायर हो गये। घर परिवार चलाने के लिये वह खेती मजदूरी करने लगे। पिता की काम में सरोज और उनके भाई ने सहयता करने लगे। सरोज ने बताया कि उनके परिवार पर उस वक़्त शादी का दबाव बनाया जा रहा था, लेकिन उनके परिवार ने उनका पूरा साथ दिया। वह बताती है कि उनकी मां को विश्वास था कि सरोज एक दिन अवश्य अधिकारी बनेगी। सरोज अपनी स्नातक की पढाई करने के लिये जयपुर गईं। वहां पोस्ट ग्रेजुएशन, उसके बाद उन्होंने चुरू के सरकारी कॉलेज से एमफिल किया।
सरोज हमेशा किरण बेदी (Kiran Bedi) की कहानी से प्रभावित रही है। किरण बेदी की कहानी पढ़ने के बाद सरोज को भी महसूस हुआ कि वह भी उनके जैसा बन सकती हैं। लेकिन खेतों में काम करना और गाय-भैस का दूध दुहना जैसे कार्य करने वाली लड़की के लिये इतने बड़े पद पर जाना आसान नहीं था। लेकिन सरोज ने कभी भी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने किरण बेदी की कहानी से प्रेरित होकर संकल्प लिया कि उन्हें भी किरन बेदी के जैसा बनना है। वह आगे बढ़ने के लिये पूरी कोशिश की।
एक बार की बात है, जब सरोज अपने खेतों में कार्य कर रही थी तब हवा के तेज झोके के साथ एक अखबार की कटिंग उनके हाथ में आई जिसपर किरण बेदी की कहानी लिखी हुईं थी। सरोज ने अखबार के उस कटिंग को अपने भाई से दिखाया तो उनके भाई ने कहा कि तुम भी उनके जैसी एक महिला पुलिस अधिकारी बन सकती हो। उसके बाद सरोज ने दृढ़ निश्चय किया कि वे पुलिस अधिकारी बनकर ही चैन की सांस लेंगी। उसके बाद सरोज ने वर्ष 2010 में UPSC की परीक्षा में बैठी और आखिरकार उनका सपना सच हो गया। उनकी मेहनत रंग लाई, वह यूपीएससी की परीक्षा में सफल रही।
वह साल 2011 के गुजरात कैडर के अधिकारी है। उन्होंने बताया कि मैं जिस गांव और समाज से आई हूं , वहां IPS बनना बेहद कठिन था। उनके पिता आर्मी में थे, लेकिन 1987 वे रिटायर्ड हो गये। उस वक्त पिता की 700 रुपये की पेंशन और खेती से होने वाली आमदनी से चार भाई-बहन का गुजारा होता था। ऐसे में शिक्षा का खर्च निकलना भी बहुत मुश्किल था। लेकिन मां और पिता के द्वारा हमेशा मनोबल को बढ़ाना और प्रेरित करने के वजह से IPS बनने का सपना साकार हुआ है। सरोज जब अपने गांव लौटी तो शादी का ताना मारने वाले लोगों का भी सीना गर्व से चौड़ा हो गया।