ज़िंदगी कब किसी इंसान को दोराहे पर लाकर खड़ा कर दें यह कोई नहीं कह सकता और उसी दोराहे पर आकर कोई इंसान अपनी मंजिलों से भटक जाता है तो वहीं कोई अपने मंजिलों को पाकर एक नया मुकाम हासिल कर लेता है।
एक समय था, जब इसी दोराहे पर डॉ राजेंद्र भारुड की ज़िन्दगी खड़ी थी।पिता कि मृत्यु के बाद माँ नहीं शराब बेचकर इन्हें पढ़ाया लिखाया। इनकी माँ की मेहनत का परिणाम है कि आज ये IAS ऑफिसर के रूप में पूरे समाज के सामने हैं।
महाराष्ट्र के धुले ज़िले के रहने वाले हैं डॉ. राजेंद्र भारूड (IAS Dr. Rajendra Bharud). जब ये गर्भ में थे तब उसी समय इनके पिता कि मृत्यु हो गई। लोगों ने माँ को सलाह दिया कि अबॉर्शन करवा लो, लेकिन माँ ने कोई जवाब नहीं दिया। घर की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि इनकी माँ को शराब बेचना शुरू करना पड़ा। माँ के ऊपर तीन बच्चों को पालने और उन्हें पढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी आ गई थी।
एक आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले (IAS Dr. Rajendra Bharud) कहते हैं कि…
“मेरा जन्म बहुत ग़रीबी में हुआ है। माँ जब शराब बेचती थी तब मैं 2-3 साल का था और जब मैं रोता था तो शराबियों को दिक्कत होती थी। इसलिए वह दो चार बूंद शराब मेरे मुंह में डाल देते और मैं चुप हो जाता था।” उन्होंने आगे ये भी बताया कि बचपन में तो कई बार उन्हें दूध की जगह शराबियों द्वारा पिलाई गई शराब की घूंटे पीकर सोना पड़ा था।
जिससे उन्हें इसकी आदत-सी हो गई थी और कई बार तो सर्दी खांसी होने पर भी उन्हें दवा कि जगह शराब ही पिलाई जाती थी। जब ये थोड़े से बड़े हुए तब शराबियों द्वारा मंगाए गए स्नैक्स के बदले वह इन्हें कुछ पैसे भी दे देते थे। उसी पैसे को इकठ्ठे कर यह अपनी किताबें खरीदा करते थे।
शुरू से ही पढ़ाई में अच्छे रहने वाले राजेंद्र (IAS Dr. Rajendra Bharud) अपनी दसवीं की परीक्षा 95% अंकों के साथ पास की और 12वीं की परीक्षा में उन्होंने 90% अंक लाएँ। इसके बाद 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद इन्हें मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला। यहाँ साल 2011 में कॉलेज के बेस्ट स्टूडेंट का अवॉर्ड भी हासिल किया।