होली का पर्व हिन्दू धर्म में काफी पवित्र माना गया है। यह पर्व भारतीय सनातन संस्कृति में अनुपम और अद्वितीय है। यह पर्व प्रेम तथा सौहार्द्र का संचार करता है।
होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा की जाती है। सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ संतान के उज्ज्वल भविष्य की कामना की जाती है। आचार्य पीके युग बताते हैं कि इस दिन से नए संवत्सर की शुरुआत होती है।
दिन में है भद्रा, सूर्यास्त के बाद करें होलिकादहन
आचार्य राकेश झा के अनुसार होलिका दहन के दिन प्रातः 05:55 बजे से दोपहर 1:33 बजे तक भद्रा हैI इसीलिए होलिका दहन भद्रा के बाद किया जाता है I
उन्होंने कहा कि भद्रा को विघ्नकारक माना गया है I भद्रा में होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती है।
होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 28 मार्च को उत्तरफाल्गुन नक्षत्र में रविवार को सूर्यास्त से लेकर निशामुख रात्रि 12. 40 बजे तक जलाई जाएगी।
वहीं आचार्य राजनाथ झा के अनुसार शाम 6. 15 बजे से शाम 7.40 बजे तक होलिकादहन का विशेष मूहूर्त है। रात्रि 2 बजकर 38 मिनट तक पूर्णिमा तिथि है। 28 मार्च को ही पूर्णिमा स्नान और दान का महत्व है।