पश्चिम बंगाल में जूट की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. लेकिन बीते कुछ वर्षों से किसान इस खेती से अलग हट रहे हैं क्योंकि आय का स्रोत घट रहा है. किसानों ने इसके बदले मक्के की खेती शुरू कर दी है और वे इसे बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं

जूट की खेती घटने से जूट से जुड़े उत्पादों में भारी कमी देखी जा रही है. इससे निपटने के लिए वैज्ञानिक तौर पर कुछ विधियां इजाद की गई हैं जिससे कि कम श्रम में जूट उगाई जा सके और किसानों की आमदनी बढ़ सके

इसके लिए एक नई विधि सामने आई है जिसमें बिना जुताई किए जूट की खेती हो रही है. इससे किसानों का श्रम और खेती पर आने वाली लागत घट रही है

भारत में सबसे ज्यादा जूट पश्चिम बंगाल में ही उगाई जाती है. बंगाल में करीब 5 लाख 15 हजार हेक्टेयर के क्षेत्र में जूट की खेती हो रही है

देश का लगभग तीन चौथाई उत्पादन इसी राज्य से आ रहा है. बंगाल के तराई अंचल में जूट और धान काफी लोकप्रिय फसल है. ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान इसकी खेती में रुचि रखते हैं और करते हैं

हालांकि अब यह चलन बदलता दिख रहा है और तराई क्षेत्र के किसान मक्के की खेती पर जोर दे रहे हैं. इसका बड़ा असर जूट के रकबे पर देखा जा रहा है

इस मशीन ने बदला खेती का तरीका

बंगाल में कृषि क्षेत्र में काम करने वाले कृषि संगठन और स्थानीय गैर सरकारी संगठन ‘सतमाइल सतीश क्लब एंड पथगर’ ने इसमें सक्रिय सहयोग दिया

इसके तहत एक ऐसी मशीन बनाई गई जो बिना जुताई किए जूट की बुआई करती है. कंबाइन हार्वेस्टर से गेहूं की कटाई करने के बाद अगली फसल बोई जा सकती है

इस मशीन का नाम हैपीसीडर है जो बिना जुताई किए जूट की बुवाई के लिए बेहतर साधन है. हालांकि हैपीसीडर के लिए किसानों को तैयार करना मुश्किल काम था लेकिन किसानों को इसके लिए मनाया गया

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