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पुश्तैनी संपत्ति हड़पकर माता-पिता या सास-ससुर की अनदेखी करना संतानों को अब महंगा पड़ सकता है।

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संसद के बजट सत्र के 8 मार्च से शुरू होने वाले दूसरे चरण में इससे संबंधित संशोधन विधेयक पेश किया जाएगा।

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इसमें बुजुर्गों के गुजारा भत्ते और गरिमापूर्ण ढंग से जीवन सुनिश्चित करने के कड़े प्रावधान हैं।

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दो साल पहले लोकसभा में पेश माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) बिल, 2019 को संसद की स्थायी समिति ने मंजूरी दे दी है।

इस पर ठोस अमल सुनिश्चित करने के लिए सिफारिशें भी दी हैं।

समिति ने संतान की श्रेणी में दामाद, बहू और सम्पत्ति में हक रखने वाले दत्तक या सौतेली संतान या रिश्तेदार को भी शामिल करने की व्यवस्था को क्रांतिकारी बताया।

समिति ने माना कि कोख से जन्मी औलाद के अभाव में बुजुर्ग इन संतानों से अपने गुजारे का दावा कर सकेंगे।

पोते-पोती और नाबालिग बच्चे के कानूनी अभिभावकों को भी संतान मानने और ससुर, सास और दादा-दादी को भी अभिभावक की श्रेणी में रखने का भी अनुमोदन कर दिया गया है।

अब संतानहीन बुजुर्ग का ऐसा कोई भी कानूनी उत्तराधिकारी संतान के दायरे में होगा जो उनकी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी है या मृत्यु के बाद हो सकता है।

यदि कोई नाबालिग है तो उसके अभिभावक को रिश्तेदार मानते हुए गुजारे के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।

वरिष्ठ नागरिकों के वेल्फेयर में कपड़े, आवास, सुरक्षा, मेडिकल सहायक, उपचार और मानसिक स्वास्थ्य भी जोड़ा जा रहा है।

गुजारा-भत्ते के लिए 10 हजार रु. महीने की सीमा खत्म की जा रही है। भत्ता अभिभावकों की जरुरतों और संतान की आय के हिसाब से तय होगा। इस पर कैपिंग नहीं होगी।

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