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आज एक बार फिर उत्तर प्रदेश के एक गांव ने हमारे पूर्वजो की शादी विवाह की याद दिला दी. बता दे की यह अनोखा मामला उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के महुटा गांव का है. बता दे की यहा सोमवार शाम बस और बोलेरो नहीं, बल्कि गुजरे जमाने की तरह बैलगाड़ियों से बरात पहुंची और दुल्हन की विदाई भी बैलगाड़ी पर बैठकर हुई। जमीन पर बैठाकर पत्तलों और कुल्हड़ में बरातियों को भोजन व जलपान कराया गया। इससे हर तरफ आधुनिकता की चकाचौंध के बीच फिजूलखर्ची रोकने का बड़ा संदेश मिला। यह अनोखी पहल की महिला ग्राम प्रधान संध्या मिश्रा ने, जिन्होंने सुविधा संपन्न होने के बावजूद भतीजे अंकित की शादी पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार ही की।

बताया जा रहा है की एक दर्जन से ज्यादा बैलगाड़ियों से दूल्हा अंकित मिश्रा दुल्हन को लेने चार किमी दूर शिवपुरी बरात लेकर पहुंचा। दूल्हे के साथ उनकी प्रधान चाची संध्या मिश्रा भी बैलगाड़ी पर बैठीं। बैलगाड़ियों से बरात जाते देख राहगीर आकर्षित हुए। शाम करीब सात बजे शिवपुरी में बरात का स्वागत प्लास्टिक की प्लेट और गिलासों में नहीं, बल्कि कुल्हड़ और दोना-पत्तल से हुआ। दूल्हे की चाची एवं प्रधान संध्या ने कहा, डीजल और पेट्रोल महंगा है।

साथ ही वाहनों से प्रदूषण भी फैलता है। बताया जा रहा है की इसलिए बैलगाड़ी में बरात ले जाने की पुरानी परंपरा निभाई। चकाचौंध से दूर इस बरात से दुल्हन गौरी भी खुश नजर आईं। आपको बता दे की मंगलवार को दुल्हन की विदाई भी बैलगाड़ी पर बैठकर ही हुई। ग्राम प्रधान ने बताया कि भतीजे की बरात में वाहनों और टेंट आदि में एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ। उस धनराशि से भतीजे और दुल्हन के लिए कपड़े व जेवर बनवाए। इससे बराती व जनाती खुश नजर आए।

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