यह सरस्वती मूर्ति एक मुस्लिम देश इंडोनेशिया (जहाँ हिन्दू आबादी तीन प्रतिशत है) ने अमेरिका (हिन्दू आबादी एक प्रतिशत से कम) को 2014 में भेंट दी थी। अमेरिका ने इस सुन्दर मूर्ति को अपनी राजधानी वाशिंगटन में स्थापित किया है।
सरस्वती पूजा स्कूलों और कॉलेजों में एक ग्रुप प्रोजेक्ट वर्क की तरह होता है, जिसमें बहुत सारे छात्र मिलकर इस पूरे आयोजन को सफल बनाते हैं।
चंदा मांगने से लेकर मूर्ति के चयन, उसे रिक्शे ठेले पर सम्हाल कर लाना, स्थापना, पंडाल का निर्माण, सफाई, प्रसाद बनाना, फलों की कटाई से लेकर पूजा-अर्चना और विसर्जन। और घूम घूम के आस पास के तमाम अन्य पंडालों में जाना।
आजकल कुछ लोगों को धार्मिक परम्पराओं से बहुत बैर दीखता है, चाहते हैं कि ये सारे आयोजन बंद कर दिए जाएँ। ख़ास तौर से सारे हिन्दू धार्मिक पर्व त्यौहार।
लेकिन ऐसी सोच ठीक नहीं। इस विशाल देश में तरह तरह की संस्कृतियाँ और परम्पराएँ हैं। सभी धर्मों की विविध सांस्कृतिक परम्पराएँ फलें-फूलें, वही अच्छा हो।
पुरानी सांस्कृतिक परम्पराओं में जो विद्रूपता हो, उन्हें त्याग कर उनके सौंदर्य को बनाये रखें। मैंने कभी किसी देवी देवता की शक्तियों में यकीन नहीं किया लेकिन उनके नाम पर जो पर्व त्यौहार मनाये जाते हैं, उनमें निहित सौंदर्य, उल्लास और लालित्य को जीवन का अभिन्न अंग मानता हूँ।