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आम लोगों के लिए एक बहुत ही राहत भरी खबर सामने आ रही है. बता दे की विदेशी बाजारों में तेजी के बीच आयातित तेलों के भाव में रिकॉर्ड तेजी आने से बीते सप्ताह देशभर के तेल-तिलहन बाजारों में सरसों तेल तिलहन छोड़कर लगभग सभी तेल-तिलहनों के भाव सुधार दर्शाते बंद हुए. सरसों के नई फसल की आवक बढ़ने से सरसों तेल-तिलहन की कीमतों में गिरावट देखने को मिली.

60 फीसदी करता है आयात : मीडिया रिपोर्ट की माने तो भारत अपने खाद्य तेल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लगभग 60 प्रतिशत भाग का आयात करता है. यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ते भूराजनीतिक तनावों के कारण अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं के अलावा खाद्य तेलों की आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका से इन तेलों के दाम मजबूत हुए हैं.

सरसों का तेल है 30-40 रुपये महंगा : जैसा की हम सब जानते है की तेलों के दाम पहले ही आसमान छू रहे हैं. कच्चा पाम तेल और पामोलीन तेलों के भाव रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचे हैं और देशी तेलों में जिस सरसों का दाम बाकी तेलों से लगभग 30-40 रुपये किलो अधिक रहा करता था. वही अब उन आयातित तेलों के मुकाबले सरसों का दाम लगभग 5-7 रुपये किलो नीचे हो गया है. सीपीओ और पामोलीन जैसे आयातित तेलों के दाम आसमान छू रहे हैं और दिलचस्प यह है कि इसके लिवाल भी कम हैं. ऐसी स्थिति में कौन इन तेलों का आयात करने का जोखिम मोल लेगा जब घरेलू तेल आयातित तेलों से सस्ते हों.

उत्तर भारत में सरसों की है ज्यादा खपत : जानकारों की माने तो उत्तर भारत में तो सरसों की अधिक खपत होती है लेकिन तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात में सूरमुखी, सोयाबीन, बिनौला, मूंगफली जैसे अन्य तेलों की अधिक खपत है. सरसों तो उत्तर भारत की जरुरतों को कुछ हद तक पूरा कर सकता है पर युद्ध बढ़ने के बीच सूरजमुख्री और सोयाबीन डीगम जैसे बाकी खाद्य तेलों का आयात प्रभावित हो सकता है.

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