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अभी के समय में लोगों को फल खाने और जूस पीने की हर कोई सलाह देता है, कारण साफ है स्वस्थ्य जीवन। आम के आम गुठलियों के दाम। मुहावरा पुराना है, लेकिन इसे नया आयाम दिया है सोलन जिला स्थित डा. वाइएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी ने। विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे सेब का जूस निकालने के बाद बचे पोमेस यानी सेब के भीतरी हिस्से (पोमेस) से कई खाद्य वस्तुएं बनाई जा सकती हैैं।

अग्रेजी की कहावत ‘एन एप्पल ए डे किप्स डॉक्टर आवे’ पर विश्वास करते हुए आज के समय में बहुत से लोग सेब को खाते हैं तो बहुत से लोग सेब का जूस पसंद करते हैं, जो वाकयी उन्हें लाभ भी पहुंचाता है। विश्वविद्यालय के फूड साइंस एंड टेक्नालाजी विभाग ने केक, बिस्किट, पोमेस पाउडर व जैम जैसे उत्पाद तैयार किए हैं। लैब में एप्पल पेक्टिन केमिकल भी तैयार किया है। इस केमिकल से जेली बनाई जा सकती है।

जानकारी के अनुसार हिमाचल प्रदेश सहित पहाड़ी राज्यों में सेब का व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जाता है। सेब से जूस निकालने के बाद जो पोमेस शेष रह जाता है, उसे अधिकांशत: फेंक दिया जाता है। विश्वविद्यालय में इस पर शोध किया गया। बता दे की पोमेस को पहले फ्रिज में रखना होता है, ताकि यह खराब न हो। इसके बाद भी इसमें से बचा जूस निकालकर सिलेरी यानी पल्प तैयार किया जाता है।

छुपा है स्वास्थ्य का खजाना : बताया जा रहा है की एप्पल पोमेस पाउडर स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है। इसमें वे तमाम तत्व मौजूद रहते हैं, जो एक सेब में होते हैं। इसमें पर्याप्त मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जो शरीर में कोलेस्ट्रोल और हृदयाघात की आशंका को कम करता है। उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में भी यह कारगर है। विटामिन सी व कैल्शियम भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। खास बात यह है कि पोमेस पाउडर में एंटी कैंसर तत्व भी होते हैं।

बेरोजगार लगा सकते हैं यूनिट : जानकारी के लिए बता दे की यदि कोई बेरोजगार एप्पल पोमेस से संबंधित यूनिट स्थापित करना चाहता है तो नौणी विश्वविद्यालय उसकी पूरी सहायता करेगा। विश्वविद्यालय 40 हजार रुपये में तकनीक बेचेगा। संबंधित कंपनी या व्यक्ति के साथ समझौता ज्ञापन किया जाएगा। उत्पादन व मशीनरी से संबंधित सभी प्रकार की तकनीक भी मिलेगी। आठ से 10 लाख रुपये खर्च कर यूनिट स्थापित की जा सकती है।

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