कुप्रबंधन और समय के साथ कदमताल न कर पाने की कमी किस तरह से एक चलती-फिरती कंपनी को आकाश से जमीन पर ला पटकती है, उसका एक और उदाहरण भवानी पेपर मिल के रूप में सामने है। स्वर्णिम अतीत रखने वाली जिस भवानी पेपर मिल से सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी चलती थी, अब उसे नीलाम करने की तैयारी है। हैरत की बात है कि जिला मुख्यालय पर 2015 से बंद पड़ी जिस पेपर मिल की स्थापना 39 साल पहले 250 करोड़ की लागत से की गई थी अब उसकी कीमत 44 करोड़ आंकी गई है।

पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के प्रयासों से श्री भवानी पेपर मिल 1982 में शुरू हुई थी। इसके लिए स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड से सुलतानपुर रोड पर 40.61 एकड़ भूमि लीज पर ली गई थी। करीब 200 करोड़ का टर्नओवर देने वाली यह मिल औद्योगिक क्षेत्र में छा गई। देश के विभिन्न राज्यों के अलावा बांग्लादेश और नेपाल समेत अन्य कई देशों में यहां से कागज की आपूर्ति होती थी। एकाएक इसके सितारे गर्दिश में आ गए। तकनीक अपग्रेड न करने से लागत बढ़ी और मिल घाटे में चली गई। कर्मचारियों को हटाया जाने लगा। प्रयासों के बावजूद हालात न सुधरे और मार्च, 2015 में यहां ताला लटक गया। मिल पर बैंकों का करोड़ों रुपये का कर्ज है। इसकी अदायगी न होने पर प्रबंधन नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में चला गया। अब इसे नीलाम करने की तैयारी है।

100 करोड़ से कम की नहीं है भूमि : नीलामी के लिए मिल का मूल्यांकन कराया जा चुका है। करीब 44 करोड़ रुपये इसकी कीमत आंकी गई है। हालांकि, यह कीमत निर्धारित नहीं है। नीलामी में अधिक भी हो सकती है। जानकार बताते हैं कि औद्योगिक इलाके की जिस भूमि पर यह मिल बनी है, सिर्फ उसी की कीमत 100 करोड़ से कम नहीं होगी।

सैकड़ों घरों का चूल्हा जलाती थी यह मिल : अधिकारियों और कर्मचारियों को मिलाकर करीब 950 लोग यहां काम करते थे। इसके अलावा आसपास के हजारों किसान व छोटे-मोटे व्यापारियों की रोजी-रोटी का अप्रत्यक्ष रूप से यह मिल साधन थी। कोई पुआल की आपूर्ति करता था तो कोई भूसी की।

फैक्ट फाइल

  • 40 – एकड़ क्षेत्रफल
  • 1979 – वर्ष में शुरू हुआ निर्माण
  • 1982 – वर्ष में चालू हुई फैक्ट्री
  • 250 – करोड़ थी लागत
  • 200 – करोड़ प्रतिमाह टर्नओवर
  • 950 – कर्मचारी करते थे काम
  • 2015 -वर्ष के मार्च महीने में लगा ताला

साभार – दैनिक जागरण

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