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भगवान श्री कृष्ण जी के जन्मदिन के रूप में जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। जन्माष्टमी का पर्व पूरी दुनिया में लोग अपनी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ धूमधाम से मनाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण योगों-योगों से हमारी आस्था के केंद्र बने हुए हैं। कभी वह यशोदा मैया के लाल होते हैं तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा। आपको बता दें कि भगवान श्री कृष्ण जी देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र थे। जन्माष्टमी के दिन मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है और जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत का विधान है।

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आपको बता दें कि कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव है जिसे हर वर्ष भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण का जन्म इसी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी 30 अगस्त को मनाई जाएगी। वैसे तो यह पर्व देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है परंतु मथुरा-वृंदावन में इस पर्व की अलग ही धूम देखने को मिलती है। लोग मंदिरों और घरों में बाल गोपाल के जन्म उत्सव का आयोजन करते हैं और उनके लिए पालकी सजाई जाती है।

ऐसा बताया जाता है कि अगर जन्माष्टमी का व्रत नि:संतान दंपत्ति रखते हैं तो उन्हें बाल गोपाल कृष्ण जैसी संतान की प्राप्ति होती है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से जन्माष्टमी का मुहूर्त, पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में जानकारी देने वाले हैं।

जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त

अष्टमी तिथि प्रारंभ- 29 अगस्त दिन रविवार को रात 11:25 बजे से

अष्टमी तिथि का समापन- 30 अगस्त दिन सोमवार को देर रात 01:59 बजे पर

पूजा मुहूर्त- 30 अगस्त को रात 11:59 बजे से देर रात 12:44 बजे (31 अगस्त) तक

जानिए जन्माष्टमी पूजन विधि

1. आप जन्माष्टमी के दिन सुबह के समय जल्दी उठकर स्नान कर लीजिए उसके बाद अपने सभी कर्मों से निवृत्त होने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहन लें।

2. उसके बाद पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ अपना मुंह करके व्रत का संकल्प लीजिए।

3. अब आप माता देवकी और भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्ति या चित्र पालकी में स्थापित कीजिए।

4. आप पूजा में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा आदि देवताओं के नाम जपें।

5. आप रात्रि में 12:00 बजे के बाद भगवान श्री कृष्ण जी का जन्मोत्सव मनाएं।

6. आप पंचामृत से अभिषेक करवाकर भगवान को नए वस्त्र अर्पित कीजिए और लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं।

7. आप पंचामृत में तुलसी डालकर माखन-मिश्री और धनिया की पंजीरी का भोग भगवान को लगाएं।

8. इसके बाद आप आरती कीजिए। आरती करने के बाद आप प्रसाद को भक्तजनों में बांटे।

जानिए जन्माष्टमी तिथि का क्या है महत्व?

अगर हम धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देखें तो भगवान विष्णु जी ने धर्म की स्थापना करने के लिए भगवान श्री कृष्ण जी के रूप में जन्म लिया था। अगर इस दिन का व्रत पर भगवान श्री कृष्ण जी का स्मरण किया जाए तो यह अत्यंत फलदाई माना जाता है। शास्त्रों में जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। भविष्य पुराण में इस व्रत को लेकर यह उल्लेख किया गया है कि जिस घर में यह देवकी व्रत किया जाता है वहां अकाल मृत्यु, गर्भपात, दुर्भाग्य तथा कलह नहीं होता है। इस व्रत को एक बार भी करने से संसार के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

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