पटना. राज्य का सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) पिछले पांच साल में दो गुना से ज्यादा हो गया है और यह लगातार बढ़ रहा है. वर्तमान में यह सात लाख 57 हजार करोड़ रुपये है. वित्तीय वर्ष 2015-16 में यह तीन लाख 72 हजार करोड़ था. फिर भी इस अनुपात में राज्य का टैक्स संग्रह नहीं बढ़ा है. जीएसडीपी में राज्य से संग्रह होने वाले सभी तरह के टैक्स का योगदान 10 फीसदी से भी कम है.
इसके दो मतलब साफ हैं, पहला- राज्य में टैक्स देने वालों की संख्या काफी कम है. दूसरा- राज्य में इनफॉर्मल इकोनॉमी का दायरा काफी बड़ा है, जिसे नियमानुसार टैक्स के दायरे में लाने की जरूरत है. साथ ही सूबे में आयकर या अन्य तरह के टैक्स नहीं देने वालों की संख्या भी काफी है. इन्हें भी टैक्स दायरे में लाने की जरूरत है. सही टैक्स क्षमता का आकलन करते हुए इसे बढ़ाने की आवश्यकता है. तमाम कोशिशों के बाद भी राज्य का टैक्स संग्रह जीएसडीपी के 10 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच पाया है. यह करीब सात प्रतिशत के आसपास ही है.
वर्तमान में राज्य को अपने सभी स्रोतों से प्राप्त होने वाले आंतरिक टैक्स के रूप में साढ़े 37 हजार करोड़ रुपये आते हैं. इसमें सबसे ज्यादा वाणिज्य कर से साढ़े 27 हजार करोड़, निबंधन से पांच हजार करोड़, परिवहन से ढाई हजार करोड़ एवं भूमि राजस्व से 500 करोड़ रुपये के अलावा ईंट भट्टा, बालू एवं गिट्टी से करीब एक हजार 700 करोड़ रुपये प्राप्त होते हैं. हालांकि, चालू वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित टैक्स संग्रह के इस लक्ष्य से थोड़ी कम राशि लॉकडाउन समेत अन्य कारणों से पिछले वित्तीय वर्षों में प्राप्त हुई थी.
राज्य के सभी आंतरिक टैक्स स्रोतों को छोड़कर आयकर के रूप में बिहार से करीब साढ़े 11 से 12 हजार करोड़ रुपये और सेंट्रल जीएसटी से एक हजार 200 करोड़ लगभग सालाना प्राप्त होते हैं. ये दोनों टैक्स केंद्र सरकार की एजेंसी वसूलती है. इस तरह बिहार में केंद्र और राज्य सरकार के विभाग मिलकर करीब साढ़े 52 हजार करोड़ रुपये ही साल में वसूल पाते हैं, जो कुल जीएसडीपी का सात प्रतिशत ही है.