blank 1 5

  हौसले बुलंद हो और मन में कुछ कर लेने की ठान लें तो कोई भी काम कठिन नहीं होता। कुछ वैसे हीं कार्यों में से एक बिहार की रहने वाली आकांक्षा सिंह ने कर दिखाया है। इनका जन्म शहर में हुआ और पालन पोषण भी शहरों में हीं हुआ लेकिन आकांक्षा सिंह ग्रामीण इलाकों के गरीब लोगों का दुख दर्द समझती हैं। आईए जानते हैं आकांक्षा सिंह किस तरह गांव को अपने कार्यों से बेहतर बना रही हैं…

आकांक्षा ने जमीनी स्तर पर गांव-गांव घुमकर लोगों के समस्याओं को सुना, देखा और महसूस किया। आकांक्षा सिंह 2014 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से सोशल इंटरप्रेन्योरशिप में मास्टर्स करने के बाद इंटर्नशिप करने के लिए मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले गई। आकांक्षा सिंह बताती हैं कि वे वहां दो हफ्ते रहीं और ये दो हफ्ते में उन्होंने देखा कि वहां के किसी भी घर में न तो शौचालय है और न ही ठीक से बिजली आती है।

Also read: बिहार में बिछेगा सड़कों का जाल, इन जिलों से गुजरेंगी 3 एक्सप्रेस-वे

Also read: बिहार में मानसून आने की हुई घोषणा, जाने कब गरजेंगे बादल

यहां तक कि महिलाएं रात होने से पहले ही सब काम कर लेती हैं। आकांक्षा सिंह ने यह भी देखा कि यहां की महिलाएं अभी भी गोबर के उपलों से खाना बनाती हैं और उस गोबर के उपलों से निकलती खतरनाक धुएं से परिवार का स्वस्थ खराब हो रहा था। यहां के किसान केमिकल वाले खाद और कीटनाशकों पर ज्यादा निर्भर थे।

आकांक्षा सिंह बताती हैं कि ज्यादा केमिकल वाले खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल करने से मिट्टी में पीएच स्तर को खराब कर दिया था जिसके कारण इसकी उर्वरता प्रभावित हुई थी। यहां तालाब की भी ठीक से देखरेख नहीं थी। ग्रामीण लोग पूरे गांव के कचरे उसी तलाब में फेंका करते थे जिस तलाब से घरेलू कामों के लिए पानी लिया जाता था। गांव के लोग अपने पशुओं को धोने के लिए इसी तलाब में लाया करते थे।

WhatsApp Image 2020 09 20 at 5.18.48 PM

यहां रसोई से बायोडिग्रेबल कचरे के लिए कोई प्रबंध नहीं था। आकांक्षा सिंह बताती हैं कि वहां जमा हुए बायोदिग्रेबल कचरे से मच्छर पैदा होते थे और इस मच्छर के काटने से लोगों को बीमारियों और पशुधन की हानि का दंश झेलना पड़ता था। मच्छर से बचने के लिए यहां के लोग चावल के भूसी जलाते थे।

इस तरह से यहां के लोगों का जीवन चल रहा था। आकांक्षा सिंह कहती हैं कि भारत में ग्रामीण इलाकों के लिए विद्युतीकरण योजनाएं थी लेकिन यह क्षेत्र इस योजनाओं के लिए प्रभावी रूप से लागू नहीं हुई थी। यहां के ग्रामीण लोग खाद और कीटनाशकों की भुगतान अपनी जेब से कर रहे थे। इससे यहां के ग्रामीण लोगों की आजीविका बिगड़ रही थी। आकांक्षा सिंह ने कहा की मैंने महसूस किया कि यहां के किसान क्यूं बाहरी एजेंडों का भुगतान करें, जबकि वह अपने लिए खुद बिजली बना सकते हैं और इससे अपने कई समस्या को सुलझा सकते हैं।

इन सारी समस्याओं को देखते हुए आकांक्षा सिंह के मन में बायो- इलेक्ट्रिसिटी का विचार आया। आकांक्षा सिंह कहती हैं कि यहां के आधिकांश लोग मवेशी पालन करते हैं। जिससे एक बायोगैस प्लांट आसानी से लगाया जा सकता है। इसमें खाद और बायोडीग्रेबल कचरे का उपयोग करके पूरे गांव में बिजली उपलब्ध कराया जा सकता है।

इसके अलावा बायोगैस के प्लांट से मिलने वाले गैस से महिलाओं की रसोई में मदद मिल सकती है। आकांक्षा सिंह ने स्वंयभू इनोवेटिव सल्शयुन प्राइवेट लिमिटेड परियोजना के बारे में विचार किया। यह परियोजना गरीब किसानो के परिवार की जिंदगी में रोशन करने की है। आकांक्षा सिंह ने इस परियोजना को अपने राज्य बिहार में चलाने के लिए फैसला किया।

WhatsApp Image 2020 09 20 at 5.18.49 PM

इन्होंने समस्तीपुर का एक इलाका चुना, जहां 50 घरों का एक दलित परिवार रहता था। उस इलाके में बिजली नहीं थी। यहां के लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे थे। आकांक्षा सिंह बताती हैं कि उनके लिए यह सब कर पाना कठिन था लेकिन इन्होंने अपने हौसलों को कभी पीछे हटने नहीं दिया। आज इन सभी परिवारों के घरों में बिजली है और इसके लिए उन्हें प्रतिमाह सिर्फ 60 रुपए की राशि का भुगतान करना पड़ता है।

Raushan Kumar is known for his fearless and bold journalism. Along with this, Raushan Kumar is also the Editor in Chief of apanabihar.com. Who has been contributing in the field of journalism for almost 4 years.