RJD सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Prasad Yadav ) अस्पताल से ही वापस नहीं आए हैं। बल्कि, राजनीति में भी वापस आ गए हैं। वे चुनाव भले नहीं लड़ सकते लेकिन जिस राजद के वे सुप्रीमो हैं उसे और आगे तो जरूर ले जा सकते हैं। वे भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाने में भी अपनी ताकत लगाएंगे। उनके शुभचिंतक चिंतित थे कि लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav ) ठीक से बात भी कर पाएंगे कि नहीं। लेकिन, लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav ) पहले की तरह ही हाजिर जवाब हैं और नाप तौल कर ही बोलते हैं।

शरद पवार, शरद यादव, अखिलेश सिंह सरीखे नेताओं से मुलाकात के बाद बिहार (bihar) की राजनीति में भी गरमाहट है। गरमाहट इसलिए है कि लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav ) सामाजिक न्याय के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। इस नाते उनकी अलग पहचान है। एनडीए की सरकार में बढ़ती कीमतों, जातीय जनगणना का सवाल और दो बच्चे ही पैदा करने से जुड़ा जनसंख्या नियंत्रण वाला सवाल लोगों के सामने है।

लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav ) देश की साझा संस्कृति की बात करते रहे हैं। इसलिए मुसलमानों का वोट बैंक भी उनके साथ रहता है। लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav ) की एंट्री से बिहार के सत्तापक्ष के नेताओं में भी खलबली मची हुई है। उन्हें यह डर है कि कहीं लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav ) बिहार आकर सियासी उलटफेर न कर दें।

लालू प्रसाद की ताकत…
वह साल 1990 का दौर था। भाजपा राम मंदिर मुद्दे पर देश भर में उग्र थी। इसके लिए समर्थन जुटाने के लिए लालकृष्ण आडवाणी राम रथ लेकर निकल पड़े। जहां-जहां से रथ गुजरा लोगों ने स्वागत किया लेकिन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने बिहार की सीमा में आते ही रथ को रोक दिया। यह रथ भाजपा के लिए अश्वमेघ के घोड़े की तरह था। रथ रुका, और आडवाणी गिरफ्तार हुए तो पूरी राजनीति ही बदल गई। भाजपा लोकसभा चुनाव में नंबर एक पार्टी नहीं बन पाई। मंडल की राजनीति पर कमंडल भारी नहीं हो पाया।

लालू ने पीएम बनाया और पीएम बनने से रोका भी
यह लालू प्रसाद की ताकत ही रही कि वे इंद्रकुमार गुजराल और एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने वाले नेताओं में शामिल रहे। वाजपेयी को दुबारा प्रधानमंत्री बनने से रोकने में लालू की बड़ी भूमिका रही। वहीं, 1999 के बाद जब कांग्रेस केंद्र में कमजोर हो रही थी।

पार्टी में सोनिया गांधी के नाम पर भी विरोध था। तब सोनिया गांधी को लालू प्रसाद ने अपना समर्थन दिया और 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन कर बिहार में करीब दो तिहाई सीट हासिल की। असर यह हुआ कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार फिर से वापसी नहीं कर पाई। हालांकि, लालू यादव को बड़ा फायदा हुआ कि वे रेलमंत्री बने।

लालू प्रसाद और नीतीश कुमार का साथ
2014 का लोकसभा चुनाव बिहार में नीतीश कुमार ने अपने बूते लड़ा। परिणाम निराशाजनक रहा। नीतीश कुमार ने अपनी जिम्मेदारी स्वीकारी और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन जब भाजपा मांझी को अपने ग्रिप में लेने लगी और मांझी, नीतीश की बात से बाहर जाने लगे तब लालू प्रसाद यादव के सहयोग से ही मांझी को सत्ता से बेदखल किया जा सका। 2015 विधानसभा चुनाव में लालू ने नीतीश कुमार से हाथ मिलाया और बिहार में भाजपा को रोक दिया।

अपनी जाति के सर्वमान्य नेता
लालू प्रसाद की सबसे बड़ी ताकत यह है कि उनकी एक आवाज पर उनकी यादव जाति के लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट देने के लिए तैयार रहते हैं। यह वोट बैंक 16 फीसदी है। हालांकि, कुछ अपवाद भी रहे हैं, जैसे कि लालू प्रसाद ने बेटी मीसा भारती को दो बार लोकसभा का टिकट दिया पर वह हार गईं। दोनों बार उनके विद्रोही सहयोगी रामकृपाल यादव भाजपा से जीत गए। विधानसभा चुनाव में राबड़ी देवी को भी दो सीटों पर हारना पड़ा था।

सबसे ज्यादा 8 मुसलमान विधायक लालू की पार्टी से
मुसलमान भी लालू प्रसाद को ही अपना सबसे बड़ा पैरोकार मानते हैं। यह वोट बैंक भी 16 फीसदी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में 19 मुसलमान विधायक बिहार में जीते। इसमें से 8 विधायक लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से जीते। इस वोट बैंक के मामले में लालू प्रसाद ने सबको पीछे छोड़ दिया।

जदयू से एक भी मुसलमान चुनाव नहीं जीत सके। जेडीयू ने BSP के जमा खान को पार्टी में शामिल कराकर मंत्री बनाया और मुस्लिम प्रेम दिखाया। BJP ने शाहनवाज हुसैन को MLC और मंत्री बनाकर यह प्रेम दिखाया। विवादित नेता साबिर अली को भी भाजपा ने अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया।

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