टोक्यो ओलंपिक में भारतीय तिरंगे को फहराने के लिए जो युवा खिलाड़ी तैयार हैं, उनमें एक नाम मनोज सरकार का भी है. रुद्रपुर (उत्तराखंड) के एक गरीब परिवार में जन्मे मनोज ने जिस तरह से कड़े संघर्ष के बाद टोक्यो ओलंपिक में अपना टिकट पक्का किया है, वो एक मिसाल है. मनोज का बचपन आर्थिक तंगी में बीता. बेहद कम उम्र में एक दवा के ओवरडोज के कारण उनके एक पैर ने काम करना बंद कर दिया था.

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जैसे-तैसे उनके घरवालों ने उनका इलाज कराया. बाद में आगे बढ़ने के लिए उन्हें साइकिल में पंचर जोड़ने. बैलगाड़ी से मिट्टी ढुलान और घरों में पीओपी बनाने जैसे कई छोटे काम करने पड़े. बचपन से ही मनोज को बैडमिंटन खेलने का शौक था, वो एक खिलाड़ी बनना चाहते थे. मगर पांव में कमजोरी के चलते वो इस सपने को पूरा करने के लिए आगे नहीं बढ़ पा रहे थे. ऐसे में उनकी मां सहारा बनीं.

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उन्होंने ही मज़दूरी से जुटाए पैसों से मनोज को उनका पहला बैडमिंटन खरीदकर दिया था. मां के इस प्रोत्साहन ने मनोज को बल दिया और फिर उन्होंने मैदान पर अपना पसीना बहाना शुरू किया. धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी. वो एक अच्छे खिलाड़ी की तरह खेलने लगे थे. बस अब उन्हें एक मौके की तलाश थी. 

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जल्दी वो मौका आया, जिसका उन्हें इंतजार था. 2012 में फ्रांस में हुई एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पहुंचकर उन्होंने अपना लोहा मनवाया और फिर कभी पीछे पलटकर नहीं देखा. आज की तारीख में वो अभी तक 30 से अधिक देशों में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं खेल चुके हैं और करीब 47 मेडल अर्जित कर चुके हैं. आगामी टोक्यों ओलपिंक में देश को उनसे बहुत उम्मीदें हैं.

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