निषादराज ने भगवान राम की नैया पार कराई थी। अब यूपी में निषादों की राजनीति करने वाले संजय निषाद ‘रामरथ’ पर सवार बीजेपी को 2022 में चुनावी नैया पार कराने का दावा कर रहे हैं। हालांकि संजय ने डेप्युटी सीएम की कुर्सी सहित इतनी ‘उतराई’ मांगी है कि बीजेपी के लिए हां करना मुश्किल है। उधर, बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडेय का सियासत से इस हद तक मोहभंग हुआ कि गेरुए कपड़े में वह कथावाचक की भूमिका में आ गए। दोनों के बारे में बता रहे हैं नरेन्द्र नाथ और प्रेम शंकर मिश्र :

बिहार काडर के 1987 बैच के आईपीएस और बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडेय राजनीति में आने को इस हद तक व्याकुल थे कि उन्होंने दो बार सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति ली, लेकिन दोनों बार मायूसी ही हाथ लगी। शायद अब उन्होंने मान लिया है कि राजनीति उनके वश की बात नहीं। इसलिए उन्होंने नया रास्ता चुन लिया। किस्मत ने उनके साथ पहली बार 2009 में दगा की, जब उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने के इरादे से रिटायरमेंट लिया लेकिन उनका टिकट नहीं हो पाया। उस वक्त उनकी सर्विस में करीब 12 साल बाकी थे। ऐसे में नीतीश कुमार के साथ उनकी नजदीकी काम आई। राज्य सरकार ने अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए उनके स्वैच्छिक सेवानिवृति वाले आवेदन को निरस्त कर दिया और उनकी नौकरी में वापसी करा दी।

पूर्व डीजीपी से अब बने संत

गुप्तेश्वर पांडेय को शुरू से नीतीश कुमार का करीबी अधिकारी माना जाता रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव के वक्त उन्होंने एक बार फिर कोशिश की। सितंबर 2020 में उन्होंने एक बार फिर सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली और औपचारिक रूप से जेडीयू में शामिल हो गए। उन्हें खुद सीएम नीतीश कुमार ने पार्टी की सदस्यता दी, लेकिन जब चुनाव लड़ने वालों की लिस्ट आई तो उनका नाम इस बार भी गायब था। उनकी जगह पर जिन्हें टिकट मिला, वह बिहार पुलिस के पूर्व कॉन्स्टेबल रहे हैं। यह डीजीपी रहे पांडेय के लिए शर्मिंदगी का विषय बना। यहीं से उनका राजनीति और नीतीश कुमार से मोहभंग हुआ। वह एकांतवास में चले गए। लेकिन पिछले दिनों उन्होंने अपनी नई भूमिका से सबको चौंका दिया। वह गेरुआ रंग के कपड़ों में भगवद‌्गीता के वाचक के रूप में दिखे। पांडेय ने पटना यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा हासिल की है।

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