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बिस्तर पर लेटी हुई एक महिला. पानी का ड्रिप लगा हुआ है. संभवत: वह इतनी बीमार है कि बिस्तर से उतरने तक की स्थिति में नहीं है. बाथरूम कराने की व्यवस्था की गई है. इसके बावजूद महिला खाना बना रही है. बिस्तर पर लेटे हुए.

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इस तस्वीर को देखकर ‘वो स्त्री है कुछ भी कर सकती है’ लाइन से आगे सोचने की जरूरत है. ये स्त्री है, उसे मजबूरन सबकुछ करना पड़ता है. व्यवस्था ऐसी है. इस तस्वीर के पीछे की पूरी कहानी अभी नहीं है. कहां की है, ये भी नहीं पता है. 

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तस्वीर को यूपी कैडर के आईपीएस नवनीत सिकेरा ने शेयर किया है और लिखा है, पता नहीं इस काम को हमारा समाज कब काम मानेगा. बिना छुट्टी का, बिना पगार का, दिन में काम से कम 2 बार, आंधी, तूफान, बिजली, सर्दी या भभकती गर्मी ये पूरी जिन्दगी आखिरी सांस तक किया जाता है, पर काम नही है ये. फिर क्या है ये, क्या नाम है इसका.

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तस्वीर में दिख रहा है कि एक बीमार महिला बिस्तर लेटे हुए ही रोटी सेंक रही है.बगल में गुथा हुआ आटा है. इसे भी उसी ने गुथा होगा. बिमारी ने उसे बिस्तर पर समेट दिया है तो उसने अपना किचन भी बिस्तर के इर्द-गिर्द ही बना लिया है.

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