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रुसी मोदी, भारतीय उद्योग जगत का का चमकता सितारा असमय ही अस्त हो गया था। टाटा स्टील के पूर्व प्रबंध निदेशक रुसी मोदी आज ही के दिन सात साल पूर्व कोलकाता में अंतिम सांसें ली थी। कभी रुसी मोदी व टाटा स्टील (पूर्ववर्ती टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी, टिस्को) एक दूसरे के पर्याय माने जाते थे। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कभी टाटा स्टील में 50 रुपये वेतन पर फोरमैन की नौकरी करने वाला रुस्तमजी होमुसजी मोदी कंपनी के शीर्ष पद पर विराजमान होगा। यह टाटा की संस्कृति है। एक बार में 16 अंडों का आमलेट खाने वाले रुसी मोदी अपनी शर्तों पर जीने के लिए जाने जाते थे। वह भारत के दुर्लभ कॉरपोरेट नायक थे।

पिता सर मोदी उत्तर प्रदेश के गर्वनर थे

रुसी मोदी मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए थे। उनके पिता सर होमी मोदी बॉम्बे प्रेसिडेंसी व उत्तर प्रदरेश के गर्वनर रहे। वह भारतीय विधानसभा के भी सदस्य रहे। युवा रुसी मोदी ने लंदन के हैरो स्कूव आक्सफोर्ड के क्राइस्ट चर्च कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की।

मेरे बेटे को सबसे निचले स्तर की नौकरी दो

कहते हैं, पैरवी पुत्रों को बड़ी आासानी से नौकरी मिल जाती है। यहां तक कि किसी कंपनी को बोर्ड आफ डायरेक्टर में रख लिया जाता है। लेकिन रुसी मोदी के पिता अलग मिट्टी के बने थे। सर होमी मोदी के दूसरे बेटे थे रुसी मोदी। पिता ने रुसी मोदी को नौकरी के लिए जेआरडी टाटा के पास भेज दिया। जेआरडी ने सर होमी से पूछा, भाई, तेरे बेटे को कौन सी नौकरी दूं। होमी ने पूछा, तुम्हारें यहां सबसे नीचे स्तर की कौन सी नौकरी है। जेआरडी बोले-फोरमैन की। सर होमी ने तुरंत ही उसे फोरमैन की नौकरी देने को कहा। रुसी मोदी बड़े फख्र से यह बात कहा करते थे, मैं फोरमैन से चेयरमैन बना हूं।

50 पैसा दैनिक वेतन मिलता था

1939 में रुसी मोदी ने प्रशिक्षु के तौर पर टिस्को में काम शुरू किया। तब उन्हें 50 पैसा प्रतिदिन मिला करता था। बाद में स्थायी होने के बाद फोरमैन के रूप में काम करना शुरू किया। तब उन्हें वेतन 50 रुपये मिला करता था। अपनी मेहनत व लगन की बदौलत रुसी मोदी 1993 में टिस्को (टाटा स्टील) के चेयरमैन चुने गए।

1918 में मुंबई में हुआ था जन्म

रुसी मोदी का जन्म 1918 में मुंबई में हुआ था। उनके भाई पीलू मोदी लोकसभा सदस्य रह चुके थे और छोटे भाई काली मोदी डायनर्स क्लब की स्थापना की थी। रुसी मोदी का विवाह सिलू मुगासेठ से हुई थी। उनकी कोई संतान नहीं थी।

रुसी का मैनेजमेंट फंडा, इंसान को मशीन मत समझो

रुसी हमेशा कहा करते थे-इंसान को कभी मशीन की तरह नहीं समझना चाहिए। उसे मशीन की तरह हांकना बंद करो। अरे वह इंसान हैं। उसके भीतर भी अहसास है, जज्बात है जो हमारे और आपके भीतर है। दूसरी बात वह हमेशा कहा करते थे, कभी सिपाही को भूलकर भी मत मारो। सिपाही तो जनरल बन सकता है, लेकिन जनरल कभी सिपाही नहीं बन सकता।

कुत्तों को बिस्मार्क व गैरी बाल्डी नाम दिया था

बिस्मार्क व गैरी बाल्डी को जर्मनी व इटली को एक प्लेटफॉर्म पर लाने वाला नायक माना जाता था। वह उनसे इतने प्रभावित थे कि कुत्तों का नाम उनके नाम पर रख दिया था।

जमशेदपुर से लड़ा था निर्दलीय चुनाव

रूसी मोदी वर्ष 1998 के आमचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार थे। उनकी टक्कर भाजपा की आभा महतो से थी। मोदी ने जमकर प्रचार किया, पैसे भी खूब खर्च किए। इसके बावजूद आभा महतो से 97433 वोट से हार गए थे।

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