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कोरोना की दूसरी लहर को काबू करने और जल्द से जल्द पूरी आबादी को वैक्सीनेट करने की दिशा में 1 मई से 18+ को वैक्सीन लगाने की शुरुआत हो गई है। कई राज्यों में वैक्सीन डोज के अभाव में एक-दो दिन में शुरुआत होगी। पर जो वैक्सीन इस्तेमाल हो रही है या लगने वाली है, उसके बारे में जानना भी जरूरी है। इस बीच, यह बहस भी शुरू हो गई है कि कौन-सी वैक्सीन ज्यादा बेहतर है- कोवीशील्ड या कोवैक्सिन? फिर तीसरी रूसी वैक्सीन- स्पुतनिक V भी तो उपलब्ध होगी ही।

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खबरों के मुताबिक यह तीनों ही वैक्सीन भारत के कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान में शामिल होंगी। वैसे भी कोवीशील्ड और कोवैक्सिन तो 16 जनवरी से ही इस्तेमाल हो रही है। अच्छी बात यह है कि तीनों ही वैक्सीन कोरोना के गंभीर लक्षणों से बचाने और मौत टालने में 100% इफेक्टिव हैं। इसी वजह से दुनियाभर के वैज्ञानिक कह रहे हैं कि जो भी वैक्सीन उपलब्ध हो, उसका डोज लगवा लें। यह आपकी जान बचाने के लिए जरूरी है। पर फिर भी तीनों वैक्सीन के बारे में यह जानकारी आपको होना चाहिए…

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तीनों में कौन-सी वैक्सीन बेहतर है?

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तीनों ही अच्छी हैं। जो मिले, लगवा लो। भारत के कोरोना वायरस टीकाकरण अभियान में 16 जनवरी से ही कोवैक्सिन और कोवीशील्ड का इस्तेमाल हो रहा है। कोवैक्सिन को पूरी तरह से भारत में ही विकसित और बनाया जा रहा है। कोवीशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर विकसित किया और अब पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया बना रही है।

वहीं, 1 मई को कोरोना के खिलाफ युद्ध में शामिल होने भारत पहुंची रूसी वैक्सीन स्पुतनिक V को मॉस्को के गामालेया इंस्टीट्यूट ने रशियन डेवलपमेंट एंड इन्वेस्टमेंट फंड (RDIF) के साथ मिलकर बनाया है। भारत में हैदराबाद की डॉ. रेड्डी लैबोरेटरी की निगरानी में 6 कंपनियां इसका प्रोडक्शन करने वाली हैं। शुरुआती 1.25 करोड़ डोज इम्पोर्ट होने वाले हैं।

इन तीनों ही वैक्सीन में कुछ असमानताएं हैं और लाभ भी, जो इन्हें एक-दूसरे से अलग करती है। कोवीशील्ड दुनिया की सबसे लोकप्रिय वैक्सीन में से है, जिसका इस्तेमाल ज्यादातर देशों में हो रहा है। WHO भी इसके इस्तेमाल की आपात मंजूरी दे चुका है। वहीं, कोवैक्सिन इस समय सिर्फ भारत में इस्तेमाल हो रही है, पर म्यूटेंट स्ट्रेन्स के खिलाफ सबसे प्रभावी और असरदार वैक्सीन बनकर उभरी है। इसी तरह स्पुतनिक V को भी भारत समेत 60 से अधिक देशों ने अप्रूवल दिया है।

यह वैक्सीन कैसे बनी हैं?

कोवैक्सिन को पारंपरिक इनएक्टिवेटेड प्लेटफॉर्म पर बनाया गया है। यानी इसमें डेड वायरस को शरीर में डाला जाता है, जिससे एंटीबॉडी रिस्पॉन्स होता है और शरीर वायरस को पहचानने और उससे लड़ने लायक एंटीबॉडी बनाता है।

कोवीशील्ड एक वायरल वेक्टर वैक्सीन है। इसमें चिम्पांजी में पाए जाने वाले एडेनोवायरस ChAD0x1 का इस्तेमाल कर उससे कोरोना वायरस जैसा ही स्पाइक प्रोटीन बनाया गया है। यह शरीर में जाकर इसके खिलाफ प्रोटेक्शन विकसित करता है।

स्पुतनिक V भी एक वायरल वेक्टर वैक्सीन है। पर अंतर यह है कि इसे एक के बजाय दो वायरस से बनाया गया है। इसमें दोनों डोज अलग-अलग होते हैं। जबकि कोवैक्सिन और कोवीशील्ड के दो डोज में अंतर नहीं है।

कितने डोज कितने हफ्तों के अंतर से लेने हैं?

तीनों ही वैक्सीन दो डोज वाली हैं। यानी इम्यून रिस्पॉन्स के लिए दो डोज लेना जरूरी है। यह वैक्सीन इंट्रामस्कुलर है। यानी कंधे के पास हाथ पर इंजेक्शन लगाए जाते हैं।

कोवैक्सिन के दो डोज 4 से 6 हफ्ते के अंतर से लगाए जाते हैं। कोवीशील्ड के दो डोज 6-8 हफ्ते के अंतर से लगाए जा रहे हैं। वहीं स्पुतनिक V के दो डोज के बीच तीन हफ्ते यानी 21 दिन का अंतर रखना है।

भारत में शुरुआत में कोवीशील्ड के दो डोज में 4-6 हफ्ते का अंतर रखा गया था। पर ट्रायल्स में यह सामने आया है कि कोवीशील्ड का दूसरा डोज जितनी देरी से देते हैं, उसकी इफेक्टिवनेस उतनी ही बढ़ जाती है।

यह तीनों ही वैक्सीन भारत के मेडिकल सेट-अप के लिए उचित है। 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर इन्हें स्टोर किया जा सकता है। इसके मुकाबले अमेरिका समेत कई देशों में इस्तेमाल हो रही फाइजर और मॉडर्ना की mRNA (मैसेंजर आरएनए) वैक्सीन को स्टोर करने के लिए -70 डिग्री सेल्सियस का तापमान चाहिए होता है।

यह वैक्सीन कितनी इफेक्टिव हैं?

जब बात इफेक्टिवनेस की आती है तो यह तीनों ही वैक्सीन काफी इफेक्टिव हैं। WHO के स्टैंडर्ड्स पर तीनों ही खरी उतरती हैं। अभी भी क्लीनिकल ट्रायल्स के डेटा आ रहे हैं और इस वैक्सीन के असर के बारे में स्टडी जारी है।

कोवीशील्ड के ट्रायल्स पिछले साल नवंबर में खत्म हुए थे। इसकी एफिकेसी यानी इफेक्टिवनेस रेट 70% है, जो डोज का अंतर बढ़ाने पर बढ़ता है। यह वैक्सीन न केवल गंभीर लक्षणों से बचाती है बल्कि रिकवरी समय को भी घटाती है।

कोवैक्सिन के ट्रायल्स इसी साल हुए हैं। अप्रैल में आए दूसरे अंतरिम नतीजों में यह 78% इफेक्टिव साबित हुई है। खास बात यह है कि यह वैक्सीन गंभीर लक्षणों को रोकने में और मौत को टालने में 100% इफेक्टिव है।

स्पुतनिक V इस पैमाने पर भारत की सबसे इफेक्टिव वैक्सीन है। मॉडर्ना और फाइजर की mRNA वैक्सीन ही 90% अधिक इफेक्टिव साबित हुई हैं। इसके बाद स्पुतनिक V ही सबसे अधिक 91.6% इफेक्टिव रही है।

इन वैक्सीन की कीमत और उपलब्धता की क्या स्थिति है?

कोवैक्सिन और कोवीशील्ड जल्द ही खुले बाजार में उपलब्ध होगी। राज्य सरकारें भी इन्हें खरीदकर अपने यहां इस्तेमाल कर सकेंगी। वहीं, स्पुतनिक V के भी जल्द ही बाजार में उपलब्ध होने के संकेत मिले हैं।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने राज्य सरकारों के लिए कोवीशील्ड के एक डोज की कीमत 300 रुपए और प्राइवेट अस्पतालों के लिए 600 रुपए तय की है। वहीं, कोवैक्सिन थोड़ी महंगी है। राज्य सरकारों को यह 400 रुपए और प्राइवेट अस्पतालों में 1,200 रुपए प्रति डोज उपलब्ध होगी।

वहीं, स्पुतनिक V को डेवलप करने में मदद करने वाले RDIF के प्रमुख दिमित्रेव के मुताबिक यह वैक्सीन 10 डॉलर यानी 700 रुपए में उपलब्ध होगी। फिलहाल उसने राज्य सरकारों और प्राइवेट अस्पतालों को दिए जाने वाले रेट्स का खुलासा नहीं किया है।

हालांकि, इन वैक्सीन के लिए आपके जेब से पैसा कितना जाएगा, यह केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों के साथ ही आपके फैसले पर निर्भर करेगा कि आप प्राइवेट में टीका लगवाना चाहते हैं या सरकार से। 24 राज्य अब तक घोषणा कर चुके हैं कि वे 18+ नागरिकों को फ्री में टीका लगवाएंगे।

नए वैरिएंट्स पर यह वैक्सीन कितने प्रभावी हैं?

कोरोना वायरस के कई नए म्यूटेंट स्ट्रेन्स कई देशों में हैं। यूके केंट स्ट्रेन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन के साथ ही डबल म्यूटेंट और ट्रिपल म्यूटेंट स्ट्रेन कई देशों में मिले हैं। इन म्यूटेंट्स ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। अब तक सिर्फ यह ही साबित हुआ है कि कोवैक्सिन इन सभी वैरिएंट्स के खिलाफ कारगर है।

कोवीशील्ड और स्पुतनिक V को लेकर अब तक इस तरह का कोई दावा या स्टडी सामने नहीं आए हैं। इसके बाद भी विशेषज्ञों का मानना है कि जो भी हमारे पास उपलब्ध हो, वह वैक्सीन डोज लेना जरूरी है। इस तरह से ही आप नए म्यूटेंट स्ट्रेन्स और वैरिएंट्स को फैलने से रोक सकेंगे।

इन वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स क्या हैं?

तीनों ही वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स एक-से हैं। यह तीनों ही वैक्सीन इंट्रा-मस्कुलर होने से हाथ में काफी अंदर तक सुई जाती है। इससे इंजेक्शन की जगह पर दर्द, सूजन बेहद आम है। इसी तरह हल्का बुखार, हल्की सर्दी-जुकाम, सिरदर्द, हाथ-पैर का दर्द भी हो सकता है। घबराएं नहीं। डॉक्टर से परामर्श लें और लक्षण के अनुसार दवा लें।

किन लोगों को कौन-सी वैक्सीन नहीं लगवानी है और क्यों?

जिन लोगों को किसी भी तरह के खाद्य पदार्थ या दवाओं की एलर्जी है, उन्हें वैक्सीन नहीं लगानी है। उन्हें अपने डॉक्टर से परामर्श करने के बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए। इसी तरह अगर एक डोज लेने पर कोई जटिलता आती है तो दूसरा डोज लेने से पहले ठहरें। डॉक्टर से बात करें, तब ही कोई फैसला लें।

जिन लोगों को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी या प्लाज्मा थैरेपी दी गई है, उन्हें भी फिलहाल वैक्सीन नहीं लगवानी है। जिन लोगों को प्लेटलेट्स कम हैं या जिन्होंने स्टेरॉइड ट्रीटमेंट लिया है, उन्हें वैक्सीन का डोज देने के बाद निगरानी के लिए कहा जा रहा है। 18 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान करा रही महिलाओं को वैक्सीन के डोज फिलहाल लेने से मना किया गया है। साथ ही, जिन लोगों में कोरोना के लक्षण हैं या जो पूरी तरह रिकवर नहीं हुए हैं, उन्हें भी थोड़ा रुककर वैक्सीन के डोज लेने की सलाह दी गई है।

इन वैक्सीन का असर कितने दिन तक रहेगा?

पता नहीं। ये सभी वैक्सीन बहुत कम समय में बनी हैं। ये कितने दिन तक असर दिखाएंगी, इसके तो ट्रायल्स हुए ही नहीं है। इसी वजह से कहना बड़ा मुश्किल है कि कितने समय तक इनका असर रहेगा। फिर भी कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि कोरोना के खिलाफ बनी एंटीबॉडी 9 से 12 महीने तो कम से कम इफेक्टिव रहेगी ही। वैसे, हाल ही में फाइजर की वैक्सीन को लेकर यह बयान जारी हुआ है कि सालभर के अंदर तीसरा डोज लगाने की जरूरत पड़ सकती है। इसे देखते हुए फिलहाल किसी भी नतीजे पर पहुंचना संभव नहीं लग रहा। फिलहाल जानकारी इतनी ही है कि यह वैक्सीन मौजूदा संकट से दूर रखने में कारगर है।

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