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इंजीनीयर ने जम्बो अमरूद नाम का नया प्रजाति विकसित किया, एक अमरूद का वजन 1 किलो से भी अधिक होता है

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जैविक खेती कर फल, सब्जियां,अनाज उगाये जा रहें हैं। जैविक खेती से उत्पन्न हुए फल और सब्जियों का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होता है। अमरूद की अगर बात की जाए तो यह हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इसमें विटामिन सी रहता है जो बीमारियों से लड़ने में हमारी मदद करता है।

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अमरूद में अधिक मात्रा में पानी होता है जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है। पेट की बीमारी के लिए भी यह बहुत ही उपयोगी है। आज की यह कहानी एक इंजीनियर की है जिन्होंने इंजिनियर की नौकरी छोड़ अमरूद की खेती जैविक विधि से करनी शुरू की। जैविक विधि से उगाए गए अमरुद 500 रुपये प्रति किलोग्राम बिकते हैं। आइए पढ़ते हैं, एक इंजिनियर की कहानी जो जैविक विधि को अपनाकर अमरूद की खेती कर रहे हैं और अधिक मुनाफा कमा रहे हैं।

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नीरज ढांडा

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नीरज ढांडा रोहतक जिले के निवासी है। इन्होंने असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाया है। अगर बात अमरुद के बारे में किया जाए तो यह ज्यादा दिनों तक नहीं रहता। जल्द ही खराब हो जाता है। ज्यादा से ज्यादा आप इसे 2 दिनों तक अपने घर में रख सकते हैं। अमरूद की खेती जैविक विधि से कर इन्होंने एक अनोखा कार्य किया है। जब यह 7वीं कक्षा में पढ़ रहे थे तो इन्होंने शीशे की बोतल पर बैटरी स्थित कर टॉर्च बनाई थी।

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शुरू से ही इन्हें कुछ नया करने की जिद्द थी। नीरज जिस कार्य के लिए अपने मन में निश्चय कर लेते हैं, उसे पूरा कर ही दम लेते। इन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की। इनके बुजुर्गों की कुछ जमीन थी जिस पर अब इनका हक था। इनके घर के भी लोग खेती करते थे। यह जब अपने बड़ो के साथ मार्केट जाया करते थे तो उनको बताते थे कि मंडी में किसान के साथ गलत होता है। उनके फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता।

नीरज इंजीनियरिंग के बाद नौकरी कर रहे थे। इन्होंने कुछ पैसे इकट्ठा किया और नौकरी छोड़ उन्होंने संगतपुरा में कुछ जमीन थी वहां खेती करने के बारे में सोचा। उस 7 एकड़ जमीन में इन्होंने चेरी के खेती की शुरुआत की। पहले तो इस कार्य में असफल हुए जिस कारण उनके घर वालों ने उन्हें इंजीनियरिंग के लिए ही कहा, वह यही नौकरी करें।

लेकिन नीरज हार मानने वालों में से नहीं थे। इन्होंने थोड़े समय बाद इलाहाबाद के कायमगंज के नर्सरी से कुछ पौधे खरीदें और अमरूद की खेती की शुरुआत की। इस खेती में नीरज सफल हुयें और अमरूद के पौधें में फल आ गये। जब नीरज अपने फल को बेचने के लिए मार्केट में लेकर गए तो बिचौलियों ने उनके अमरूद की कीमत ₹7 प्रति किलो लगाई।

नीरज इस बात से नाखुश हुए। फिर इन्होंने गांव के चौराहे पर खुद के अलग-अलग 6 काउंटर बनाएं और बिचौलियों के कीमत के 2 गुना मंडी में अपने फलों को बेचा। नीरज इस बात को बखूबी जानते थे कि अमरूद बहुत जल्द खराब हो जाता है। इसीलिए इन्होंने फल को जल्दी बेचने की कोशिश की। काउंटर की मदद से बहुत से ग्राहक उनके खेतों में भी अमरुद खरीदने आयें।

सफलता हासिल करने के बाद नीरज ने छत्तीसगढ़ में खेती करने का फैसला लिया। इस खेती के लिए इन्होंने नर्सरी से जम्बू अमरूद के कुछ पौधे लाएं और अपने खेतों में उन पौधों को लगाया। उनकी मेहनत रंग लाई और उस अमरूद के पेड़ में लगभग डेढ़ किलो के एक-एक फल लगे। इस खेती के लिए वह जैविक खाद का उपयोग करते थे। इसीलिए इलाहाबाद की मिठास की तरह इस अमरुद में भी मिठास मिलती रही।

तब नीरज ने कंपनी का निर्माण किया। हाईवे बेल्ट के जरिए वह अपने अमरूद को ऑनलाइन डिलीवर करने लगें। इस जम्बू अमरूद की खासियत यह है की अमरुद जल्दी खराब नहीं होते। लगभग 10 -15 दिनों तक ताजे ही रहते हैं। ऑनलाइन डिलीवरी में ग्राहक को ट्रेकिंग की व्यवस्था मौजूद कराई गई है जिससे वह पता लगा सकते हैं कि यह फल बाग से कब तोड़ा गया है और कितने दिन का हुआ है।

नीरज की ऐसी खेती देख अन्य किसान भी यही खेती करना चाहते है। बहुत ज्यादा यात्री और किसान नीरज की खेती देखने आते हैं। नीरज के पास समय नहीं रहता था कि वह सभी को खेती के बारे में बतायें। इसलिए इन्होंने एक समय श्रेणी बनाईं जिससे वह किसानों को इस खेती के विषय मे जानकारी देते हैं। इससे इन्हें अधिक मात्रा में लाभ भी हो रहा है। नीरज के साथ उनकी खेती के बारे में हर कोई जानता चाहता है। अब वह बहुत प्रसिद्ध हो चुके हैं।

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