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रूकावटे आती हैं, सफलता की राहों में, ये बात कौन नहीं जानता . फिर भी वह मंजिल पा ही लेता है जो हार नहीं मानता है. इसी का उदाहरण अरुणिमा सिन्हा है , जो पहली विकलांग महिला है, जो माउंट एवरेस्ट पर फतह की. अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट पर सफलता पूर्वक चढ़ने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला है.

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 1998 में उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में हुआ था. अरुणिमा सिन्हा का बचपन से ही खेलकूद में रुचि थी. इसके अलावा अरुणिमा सिन्हा भारतीय सुरक्षा बल सेवा में जाना चाहती थी. एक बार की बात है अरुणिमा सिन्हा अपने सपनों को साकार करने के लिए 2011 में दिल्ली जाने के लिए पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ी. अरुणिमा सिन्हा सीआईएसएफ की परीक्षा देने जा रही थी.

हुआ यूँ की अरुणिमा सिन्हा के पास कुछ चोर आए और उनका बैग और गले का चेन छीनने की कोशिश करने लगे. अरुणिमा ने इसका विरोध किया तो चोर ने उसे ट्रेन के नीचे गिरा दिया जिसे उधर से आती है ट्रेन में अरुणिमा का पैर कुचल दिया. वह रात भर वहीँ पटरी पर दर्द से कराहती रही. फिर सुबह होंते ही लोगो ने देखा की एक लड़की रेल की पटरी पर पड़ी है. फिर उसे अस्पताल ले जाया गया. बदकिस्मती से उनका एक पैर काटना पड़ा . और वो विकलांग हो गई.

अब अरुणिमा विकलांग हो चुकी थी. इतने मुश्किलों के बावजूद अरुणिमा ने अपना हिम्मत नहीं हारी और फिर माउंट एवरेस्ट पर फतह करने की ठान ली. अरुणिमा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली बछेंद्री पाल से संपर्क किया. बछेंद्री पाल ने उसे टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया . यहां से ट्रेनिंग खत्म करने के बाद नेहरू माउंटेनरिग इंसीट्यूड में प्रवेश लिया . अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से पहले करीब 2 साल अभ्यास किया. आयरलैंड और माउंटेन कागरी जैसे पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया और अपना अभ्यास पूरी किया.

आखिरकार 2013 में 52 दिन के सफर के दौरान माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर अरुणिमा अपना परचम लहराया. उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने ₹2500000 के दो चेक दे कर अरुणिमा को सम्मानित किया गया.