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कहते वक्त कब बदल जाए पता नहीं चलता. आज हम आपको मजदूर से मालिक बनने की ऐसी दास्तान से रूबरू कराने जा रहे हैं. जिसे आप जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे. क्योंकि जो महिलाएं कभी खेत खलिहानों में मजदूरी कर अपना गुजारा करती थी. आज वे वाशिंग पावडर फैक्ट्री की मालकिन हैं.

वाशिंग पाउडर से धुल गयी गरीबी
जी हां ये कहानी है बैतूल जिले के भैंसदेही के महिला समूह की. जहां महिलाओं ने एक ऐसा समूह तैयार किया है जो उनके ख्वाबों की ताबीर और तकदीर संवारने वाली तस्वीर बन गया. ये कहानी है चिचोलढाना (मच्छी) गांव की 121 महिलाओं के छह समूहों की. जिन्होंने ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत वाशिंग पाउडर निर्माण ईकाई की स्थापना की है. इस ईकाई द्वारा प्रतिदिन एक टन वाशिंग पाउडर का निर्माण किया जा सकेगा. ईकाई को 15 टन वाशिंग पाउडर सप्लाई का ऑर्डर सीहोर तथा अन्य स्थानों से प्राप्त हो चुका है.

तीन जिलों में बेचा जा रहा वाशिंग पाउडर 
वाशिंग पाउडर ईकाई की स्थापना के लिए मां पूर्णा आजीविका संकुल संगठन से वित्तीय सहायता ऋण के रूप में प्रदान की है. इस इकाई में मच्छी, चिचोलढाना, खोदरी, महारपानी, बोरगांव, झल्लार, तामसार एवं सायगोहान से कुल 121 समूह सदस्य जुड़े है. यहां निर्मित वाशिंग पाउडर बैतूल के अलावा 3 जिलों होशंगाबाद ,हरदा ,छिंदवाड़ा ,बैतूल में बेचा जाएगा.  यहां करीब हर दिन 1000 किलो वाशिंग पाउडर बनाने का लक्ष्य है. 

यह है बनाने की विधि 
निर्मल आजीविका डिटर्जेंट के नाम से बन रहे इस पॉउडर से हाथों में जलन नहीं होती. विज्ञापन पर कोई रकम खर्च न होने से इसका बिक्री मूल्य बाजार में मिलने वाले डिटर्जेंट से 10 से 15 रुपए कम है. यह फिलहाल 60 रु किलो में उपलब्ध है. अन्य डिटर्जेंट की तरह इसके निर्माण में खाने का नमक उपयोग नहीं किया जाता बल्कि उसकी जगह सोडियम सल्फेट डाला जाता है. इससे हाथों में जलन और पॉवडर के नम होने का खतरा नहीं रहता. जिससे वाशिंग पाउडर लोगों की पसंद भी बनता जा रहा है. 

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