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Rat Trap Bond तकनीक का इस्तेमाल कर, 25% कम ईंटों व सीमेंट में बनाया इको फ्रेंडली घर

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“हर किसी के लिए घर बनाना एक सपने की तरह होता है। इसलिए हर कोई अच्छे से अच्छा घर बनवाना चाहता है। लेकिन स्टाइलिश और आधुनिक घर बनाने के नाम पर हम पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं, इस बारे में कोई नहीं सोचता है। घरों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली कौन सी सामग्री पर्यावरण के अनुकूल है और कौन-सी नहीं, अगर इन बातों को ध्यान में रखकर घर बनाया जाए तो हम काफी हद तक पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं,” यह कहना है केरल के कोल्लम में रहने वाले अनूप आरएस का। 

अनूप एक इंजीनियर हैं और उनकी पत्नी सूर्या डॉक्टर हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया कि उनका घर पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से बना है। उन्होंने खुद अपना घर डिज़ाइन किया है और पूरे निर्माण में स्थानीय इलाकों में उपलब्ध मटीरियल का इस्तेमाल किया है। 

इस्तेमाल हुई 25% कम ईंटें 

अनूप ने बताया कि उनके घर में सामान्य घरों की तुलना में 25% तक कम ईंटों का इस्तेमाल हुआ है। उन्होंने ‘रैट ट्रैप बॉन्ड‘ (Rat Trap Bond) तकनीक का इस्तेमाल किया है। दीवारें बनाने के लिए यह एक खास निर्माण की तकनीक है, जिसमें ईंटों को ‘हॉरिजॉन्टल’ तरीके से लगाने की बजाय ‘वर्टीकल’ लगाया जाता है। इससे दीवार बनाते समय इसमें कैविटी (खाली जगहें) रह जाती हैं। साथ ही, चिनाई में कम ईंटों और सीमेंट या गारे का इस्तेमाल होता है। 

उन्होंने कहा कि इस तकनीक को केरल में लगभग 50 साल पहले मशहूर आर्किटेक्ट लॉरी बेकर ने शुरू किया था। इस तरीके से बनी दीवार की ‘उष्मीय दक्षता’ (थर्मल एफिशिएंसी) भी अच्छी होती है। इस कारण गर्मियों के मौसम में घर के अंदर का तापमान, बाहर के तापमान से हमेशा चार-पांच डिग्री कम रहता है और आपको घर में एसी या कूलर की ज्यादा जरूरत महसूस नहीं होती है। अनूप कहते हैं, “हमारे घर में सिर्फ ‘गेस्ट रूम’ में एसी है ताकि अगर कभी कोई मेहमान इस्तेमाल करना चाहे तो परेशानी न हो। यह एसी भी बहुत ही कम चलता है। इसके अलावा हमारे परिवार को किसी तरह के एसी या कूलर की जरूरत नहीं पड़ती है।” 

साथ ही, वह यह भी बताते हैं कि यह तरीका आपके घर की मजबूती को बढ़ाता है। केरल में इस तकनीक से बने हुए बहुत से घर आपको देखने को मिल जाएंगे। 

कम से कम सीमेंट का किया है प्रयोग 

अनूप ने आगे कहा कि उन्होंने अपने घर में सीमेंट का उतना ही इस्तेमाल किया है, जितनी जरूरत थी। जहां भी वह बिना सीमेंट के काम चला सकते थे, वहां उन्होंने सीमेंट का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं किया है। जैसे कि उन्होंने घर पर सीमेंट का प्लास्टर नहीं किया है। “सबसे ज्यादा परेशानी प्लास्टर की ही होती है। मेरा मानना है कि प्लास्टर करके आप दीवारों को सांस लेने से रोक देते हैं। यही वजह है कि घर में ज्यादा गर्मी लगती है। इसलिए हमने घर की दीवारों को बिना प्लास्टर के ही रखा है। क्योंकि इसकी कोई जरूरत नहीं थी,” उन्होंने बताया। 

आजकल के घरों में सबसे ज्यादा समस्या होती है वेंटिलेशन की। क्योंकि लोग स्टाइलिश खिड़कियों पर तो ध्यान देते हैं लेकिन वेंटिलेशन पर उनका ज्यादा ध्यान नहीं होता है। अनूप ने इस पर विशेष ध्यान दिया है। उन्होंने अपने घर में इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि अंदर-बाहर की हवा का संतुलित आवागमन हो। ताकि घर के अंदर का तापमान भी संतुलित रहे। उनके घर में खुला आंगन भी है, जिसमें पेड़ लगे हुए हैं।

घर के फर्श के लिए उन्होंने अतांगुड़ी टाइल्स का इस्तेमाल किया है। हाथों से बनाया जाने वाली ये टाइल्स इको-फ्रेंडली और किफायती होती हैं। इन्हें स्थानीय तौर पर उपलब्ध मटीरियल जैसे रेत, सीमेंट और ऑक्साइड का इस्तेमाल करके बनाया जाता है। इनके बनाने में किसी भी तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं होता है। इसलिए पर्यावरण की दृष्टि से इनका इस्तेमाल करना सही रहता है। अनूप कहते हैं कि छत के लिए उन्होंने मैंगलोर टाइल्स और फिलर स्लैब तकनीक का इस्तेमाल किया है। 

जल संरक्षण में योगदान 

घर के निर्माण के समय इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि कैसे हम ज्यादा से ज्यादा पानी संरक्षित कर सकते हैं। अनूप कहते हैं, “जल संरक्षण को ध्यान में रखते हुए मैंने घर के बाहर और आंगन में प्राकृतिक पत्थर और छोटे-छोटे अन्य पत्थरों का इस्तेमाल किया है। ताकि बारिश के दिनों में ज्यादा से ज्यादा पानी जमीन के अंदर जाए। घरों को पूरा पक्का करवा देने से बारिश का पानी जमीन के अंदर जाने की बजाय बेकार जाता है और यही वजह है दिन-प्रतिदिन भूजल स्तर कम हो रहा है।”

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