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हर पिता चाहता है कि उसका बेटा, उससे भी आगे निकले, अच्छा काम करे, अच्छा नाम और पैसा भी कमाए। कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश) के प्रखर सिंह के पिता ने भी अपने बेटे को, इसी सपने के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने भेजा था। हालांकि प्रखर कभी भी एक इंजीनियर नहीं बनना चाहते थे। लेकिन पिता की इच्छा का मान रखते हुए, उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। तकरीबन चार साल नौकरी करने के बाद वह अपने पिता को अपने मन की बात समझा पाए कि उन्हें नौकरी नहीं करनी, बल्कि गांव में रहकर काम करना है। आज वह अपने पिता के साथ मछलीपालन का काम कर रहे हैं और अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। हालांकि, यह प्रखर के लिए इतना आसान भी नहीं था, लेकिन उन्होंने अपनी लगन और कड़ी मेहनत की बदौलत यह सफलता हासिल की है। 

साल 2018 तक, उन्हें मछलीपालन के विषय में कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन किसान इस पिता-पुत्र ने गांव में मछलीपालन के बिज़नेस को इतना मशहूर बना दिया कि आज उनके आस-पास के गांंव के तकरीबन 100 किसान मछलीपालन से जुड़कर अच्छा मुनाफा कमाने लगे हैं। 

एक इंजीनियर से बने मछलीपालक

प्रयागराज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद, साल 2014 में प्रखर दिल्ली में नौकरी की तलाश में लग गए। आख़िरकार उन्हें नोएडा की एक कंपनी में काम भी मिल गया। कुछ महीने बाद ही, उन्होंने इस नौकरी को छोड़कर दूसरी कंपनी में काम करना शुरू किया। जिसके लिए उन्हें कोलकाता जाना पड़ा।

प्रखर बताते हैं, “कोलकाता में मैंने देखा कि कैसे बंगाल में लोग घर-घर में मछलीपालन का काम कर रहे हैं। चूँकि, मेरे पिता किसान थे, इसलिए मैं मछलीपालन के बारे में ज्यादा नहीं जनता था और न ही इस तरह के बिज़नेस के बारे में सोच सकता था।” उसके बाद वह ओड़िशा में भी कुछ समय रहे, जहां उन्हें इस बारे में और अच्छी तरह से जानने का मौका मिला। उन्हें बड़ा आश्चर्य होता था कि कैसे लोग छोटे से तालाब में इतनी ज्यादा मछलियां पालकर, अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।

तभी साल 2016 में, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से हर जिले में मछलीपालन पर जोर देने के लिए एक विशेष योजना चलाई गई। चूंकि प्रखर के पिता के पास तक़रीबन 100 बीघा जमीन थी, इसलिए स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें मछलीपालन से जुड़ने की सलाह दी। हालांकि वह इस तरह का काम नहीं करना चाहते थे। लेकिन सरकारी योजना से जुड़ने और कुछ नया काम करने की उम्मीद से उन्होंने अपने 38 बीघा जमीन में मछलीपालन का छोटा सा सेटअप बनवाया। प्रखर बताते हैं कि उनके पिता ने बंगाल से कुछ लोगों को भी काम पर रखा। ताकि उनसे इस व्यवसाय के बारे में ठीक से जानकारी ले सकें। बावजूद इसके, उन्हें इस नए बिज़नेस से कोई मुनाफा नहीं हो रहा था। आख़िरकार हारकर उन्होंने इसे बंद करने या किसी और को किराये पर देने का फैसला किया। तभी प्रखर ने अपने पिता से कहा कि वह इसे चलाना चाहते हैं।

अनुभव और प्रयास से मिली सफलता 

प्रखर बताते हैं, “मेरे पिता कभी भी मुझे नौकरी छोड़कर गांव में काम करने नहीं देना चाहते थे। उन्हें लगता था कि इतनी पढ़ाई करने के बाद,  मछलीपालन का काम क्यों करना? लेकिन मुझे इस बिज़नेस से काफी उम्मीदें थीं। साथ ही मेरा नौकरी में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। इसलिए साल 2018 में, मैंने नौकरी छोड़ दी और गांव आ गया।”  गांव आकर उन्होंने  मछलीपालन की सही जानकारी ली और पिता के साथ मिलकर काम करने लगे। हालांकि पहले साल उन्हें सफलता नहीं मिली। वह बताते हैं, “गांववाले हमारा मज़ाक बनाते थे कि हमने अपने खेतों में  तालाब बनवाकर इसे बर्बाद कर दिया। इसके बावजूद हम काम करते रहे।”

वह अपनी सभी गलतियों से सीखते गए,  जिसका नतीजा यह हुआ कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान उनका काम काफी अच्छा चलने लगा। चूंकि लॉकडाउन में ट्रांसपोर्ट की दिक्क्त थी, इसलिए कई लोकल विक्रेता इनके पास से मछलियां लेने लगे। साथ ही इनका उत्पादन भी अच्छा होने लगा। आज वह उत्तर प्रदेश सहित बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश में भी अपना उत्पाद भेज रहे हैं। 

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