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बस ड्राइवर की बेटी बनी IAS अधिकारी, रिजल्ट सुनने के बाद पापा ने पहली बार कहा : शाबाश बेटा

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हर किसी की अपनी अलग-अलग प्रेरणात्मक कहानी होती है। ये कहानी है IAS बनने वाली हरियाणा के बाहदुरगढ़ की रहने वाली प्रीति हुड्डा (Preeti Hooda) की, जिनके पिता दिल्ली परिवहन निगम (DTC) में बस चलाते थे। प्रीति के मुताबिक जब उन्होंने अपने पिता को आईएएस बनने की ख़बर दी थी, उस समय उनके पिता बस चला रहे थें। प्रीति साल 2017 में अपनी UPSC की परीक्षा में 288वीं रैंक प्राप्त की थी।

कहाँ से की हैं पढ़ाई?

प्रीति शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रही हैं। उन्होंने अपनी 10वीं की परीक्षा में 77% और 12वीं में 87% अंक प्राप्त की हैं। लक्ष्मी बाई कॉलेज दिल्ली से ही हिन्दी में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया है। जिसमें उन्हें 76 प्रतिशत अंक मिले। अब वह जेएनयू से हिन्दी में पीएचडी कर रही है। उन्होंने बीबीसी हिन्दी से बातचीत के दौरान बताया कि वह हरियाणा के बहुत ही साधारण परिवार से आती है।

पापा का सपना था कि बेटी IAS बने

प्रीति ने कहा कि “जब मेरा UPSC का रिजल्ट आया तो मैंने पापा को फ़ोन किया। उस वक़्त मेरे पापा बस चला रहे थे। रिजल्ट सुनने के बाद पापा बोले:-‘शाबाश मेरा बेटा’ , जबकि मेरे पिता मुझे कभी शाबासी नहीं देते थे”।

दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान प्रीति ने बताया था कि उनका इंटरव्यू लगभग 35 मिनट चला था, जिसमें करीब 30 सवाल पूछे गए थे। प्रीति ने अपना इंटरव्यू भी हिन्दी में ही दिया था और उनका विषय भी हिन्दी ही था। प्रीति अपने इंटरव्यू में 3 सवालों के जवाब नहीं दे पाई, लेकिन उन्होंने अपना कॉन्फिडेंस लूज नहीं होने दिया। उसके इंटरव्यू में भी जेएनयू से जुड़े सवाल ही पूछे गए थे।

इंटरव्यू के दौरान प्रीति से पूछा गया था कि:-आप जेएएनयू से पढ़ाई की हैं, इस यूनिवर्सिटी की इतनी निगेटिव इमेज लोगों के बीच क्यों हैं? तो इसके जवाब में प्रीति हुड्डा ने कहा कि:-“जेएनयू सिर्फ़ निगेटिव इमेज के लिए ही नहीं जानी जाती है। इसे भारत की सभी universities में फर्स्ट रैंक मिल चुकी है”।

प्रीति हुड्डा ने हिन्दी मीडियम से ही अपना पेपर दिया। इसके अलावा परीक्षा में उनका ऑप्शनल सब्जेक्ट भी हिन्दी ही था। उन्होंने अपना पूरा इंटरव्यू भी हिन्दी में ही दिया है।

प्रीति कहती हैं, मैं बिल्कुल साधारण परिवार की हूँ और संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी हूँ। जहाँ खासकर लड़कियों की शिक्षा के बारे में बहुत ध्यान नहीं दिया जाता है। हमारे समाज में ऐसा मानना है कि लड़की को ग्रेजुएशन कराने के बाद उसकी शादी कर दो। लेकिन मेरे माता–पिता कि सोच इससे अलग थी और उन्होंने मुझे उच्च शिक्षा दी और मेरा जेएनयू में एडमिशन कराया।

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