बेगूसराय सदर प्रखंड के मोहनपुर में तरबूज की परंपरागत खेती होती है। यहां उपजने वाला देसी तरबूज के स्वाद की मिठास जिलेवासियों के जेहन में बसा हुआ है। कोरोना काल में भी यहां के तरबूज की बिक्री निर्बाध रूप से जारी है। अब समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी से लेकर नेपाल बॉर्डर तक यहां का तरबूज भेजा जा रहा है। तरबूज व पपीता की खेती कर मोहनपुर गांव आत्मनिर्भर हो गया। गांव में घुसते ही इसका अहसास भी होता है।
गांव में ही बाजार मिलने से आया बदलाव
मोहनपुर गांव में ही एसएच 55 के किनारे समानांतर तीन किलोमीटर तक दर्जनों अस्थाई फल के काउंटर पर तरबूज व पपीता सजता है। हाल के वर्षों में आए इस बदलाव से किसानों को बहुत लाभ मिलने लगा। इससे तरबूज या पपीता कभी बर्बादा नहीं होता है। पहले किसान को फल मंडी के ऊपर निर्भर रहना पड़ता था वे अपने अनुसार माल लेते थे। अब सड़क किनारे काउंटर लगने से मोहनपुर का तरबूज एसएच 55 से गुजरने वाले जिलेवासी सहित समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी के अलावा नेपाल बॉर्डर तक ले जाते हैं।
व्यापार हुआ सुगम और लाभदायक
मोहनपुर के किसान बताते हैं कि पहले केवल देसी तरबूज की ही खेती होती थी, जो एक दिन के बाद बासी हो जाता था। परंतु, अब तरबूज का हाइब्रिड बीज आने से फल खेत से टूटने के बाद एक हफ्ते तक बेचा जा सकता है। काले और चितकबरे रंग का तरबूज औसतन अधिकतम 10 किग्रा का एक होता है। बेगूसराय फल मंडी के अलावा रोसड़ा, बखरी, बलिया बाजार से व्यापारी भी ले जाते हैं। वर्तमान में भी करीब 70-80 बीघे में मोहनपुर में तरबूज की खेती की जा रही है।
क्या कहते हैं किसान, जानिए
स्थानीय किसान अरविंद सिंह बताते हैं कि नगदी फसल तरबूज की खेती 90 दिनों में पूरी हो जाती है। फरवरी मार्च में रोपनी के बाद मई-जून में फसल खत्म हो जाती है। अच्छी उपज होने के बाद 50 हजार रुपये प्रति एकड़ बचने की उम्मीद होती है। इस बीच फसल को नीलगाय, कौआ आदि से बचाना व कीड़े-मकौड़ों से बचाने के लिए चार बार स्प्रे किया जाता है।
साभार – dainikjagran