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राजस्थान के प्रतापगढ़ की ग्राम पंचायत पाल और मांड कला में न सड़क है, न बिजली है और न नेटवर्क आता है। ये कमियां ही कोरोना के खिलाफ लड़ाई में ताकत साबित हो रही हैं। आज हम आपको राजस्थान के उन गांवों में ले चलते हैं, जहां पहुंचने के लिए लोगों को कच्चे रास्ते, पगडंडी और पानी से होकर गुजरना पड़ता है।

कोरोना की पहली लहर में जिले में करीब 100 से ज्यादा गांव ऐसे थे, जो पूरी तरह सुरक्षित बच गए, लेकिन दूसरी लहर ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। हालांकि अब भी कुछ ग्राम पंचायत और राजस्व गांव ऐसे हैं, जहां कोरोना तो क्या, खांसी-बुखार भी दस्तक नहीं दे पाए। इसकी वजह है यहां के जनप्रतिनिधि और ग्रामीणों की सजगता।

जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत पाल है। यहां से करीब 8 किलोमीटर और आगे ग्राम पंचायत मांड कला है। इन दोनों ग्राम पंचायत में 8 राजस्व गांव और करीब 20 से ज्यादा ढाणियां हैं। ये सब लगभग 25 किलोमीटर के दायरे में फैली हुई हैं। आबादी 9 हजार लोगों की है।

वैसे यहां पर अब तक 10 फ्रंटलाइन वर्कर के साथ केवल 6 ग्रामीणों को ही कोरोना वैक्सीन लगी है, लेकिन कोरोना किसी को नहीं हुआ। इन 14 महीने में कहीं भी दूर-दराज तक कोरोना का कोई भी मामला सामने नहीं आया। ऐसा नहीं है कि यहां पर सैंपल नहीं लिए गए। हेल्थ डिपार्टमेंट ने सैंपल भी लिए, लेकिन सभी नेगेटिव ही आए।

जितनी दूर हेल्थ सेंटर, कोरोना से दूरी भी इतनी ही
प्रतापगढ़ से निकलने के बाद ग्राम पंचायत पाल तक करीब 55 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। जाखम बांध के मोड़ से करीब 10 किलोमीटर आगे सीता माता सेंचुरी के अधीन अनोपपुरा वन नाका तक पहुंचते-पहुंचते भास्कर टीम की गाड़ी का पहिया पंचर हो गया। बीच जंगल में स्टेपनी की मदद से दूसरा पहिया लगाया, लेकिन एक किलोमीटर बाद उसमें से भी हवा निकल गई। रास्ता इतना उबड़-खाबड़ और घुमावदार था कि गाड़ी गर्म होकर बंद हो गई।

यहां से एक बोलेरो की मदद से करीब 7 किलोमीटर आगे का सफर तय किया, लेकिन इसके बाद यहां से गाड़ी जाने का कोई रास्ता ही नहीं था। भास्कर के रिपोर्टर एक परिचित से साइकिल लेकर जंगल में पगडंडी के रास्ते आगे बढ़े। थोड़े ही आगे जाखम नदी का भराव क्षेत्र आ गया। कहीं आधा फिट तो कहीं घुटनों तक पानी था।

जूते खोल कर हाथ में लिए और अगले करीब ढाई किलोमीटर का सफर यहीं से पूरा किया। लेकिन पाल में एंट्री से ठीक पहले यहां निगरानी कर रहीं सरपंच संगीता मीणा और उनके पति बाबूलाल मीणा ने रास्ता रोक लिया। आने का कारण बताया तो वे बोले- पहली बार किसी मीडिया वाले ने यहां पर कदम रखा है, बड़ी खुशी हुई। चलो, आपको यहां के हाल-चाल बताते हैं।

हम जिन्हें कमियां मान रहे थे, यहां के लोग इसे ताकत बनाकर काम ले रहे हैं
पाल में सड़क, बिजली और मोबाइल नेटवर्क नहीं है। इन सभी सुविधाओं की दूरी यहां से कम से कम 18 किलोमीटर दूर है। नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ग्यासपुर भी 18 किलोमीटर दूर है। पाल ग्राम पंचायत वह पहला गांव है, जिसके आगे से अन्य सभी गांव की सीमा शुरू होती है या यह कहें कि सीता माता सेंचुरी में बसे हुए गांव आते हैं।

सरपंच संगीता मीणा ने बताया कि सड़क नहीं होने से पाल में घुसने का इकलौता रास्ता अस्थाई पुल है, लेकिन कोरोना को दूर रखने के लिए यहां पानी में रखे गए एक टूटे हुए पेड़ को अब साइड में कर दिया गया है ताकि बिना जरूरत कोई अंदर-बाहर आए-जाए नहीं।

बिजली, मोबाइल नहीं तो तनाव भी नहीं मांड कला के सरपंच भाणजी मीणा बताते हैं कि यहां बिजली नहीं है। मोबाइल नेटवर्क नहीं है तो अमूमन कोरोना से जुड़ी खबरें भी सीधे नहीं पहुंच पातीं। लोगों को मानसिक तनाव नहीं होता और दिल से जुड़ी बीमारियां नहीं होतीं। अगर बिजली होती तो टीवी होता और मोबाइल होते। सोशल मीडिया या अन्य माध्यम से गलत सूचनाएं और खबरें लोगों तक पहुंचतीं तो भ्रम फैलता।

कोरोना के कदम रोकने के लिए उठाए ये 5 कदम

3 मार्च से ही लॉकडाउन, सभी आयोजन रद्द
राज्य सरकार ने 3 मई से सख्त लॉकडाउन शुरू किया, जबकि इन सभी गांव में सरपंच और जनप्रतिनिधियों ने कोरोना की दूसरी लहर को पहले ही भांप लिया। 3 मार्च से ही जून तक सभी धार्मिक, सामाजिक आयोजन रद्द कर दिए और शादियां टालने के निर्देश दे दिए।

सरपंच और जनप्रतिनिधि खुद रास्तों पर पहरेदारी देते हैं
ग्राम पंचायत पाल और मांड कला में दोनों सरपंच सहित उपसरपंच पाल सामाजी मीणा, मांडवला के लक्ष्मण मीणा, सामाजिक कार्यकर्ता रमेश चंद्र मीणा, सोहन लाल मीणा और कई वार्ड पंच खुद दिन में 4-4 घंटे की शिफ्ट में गांव में घुसने वाले रास्ते पर पहरेदारी देते हैं।

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