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बिहार में पंचायत चुनाव (Bihar Panchayat Election) होने के आसार अब दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों के लिए सुखद खबर सामने आ रही है. समय पर चुनाव ना हो पाने की स्थिति में ऐसी संस्थाओं को क्रियाशील बनाए रखने के मकसद से एक साथ दो विकल्पों पर विचार किया जा सकता है. अगर फैसला दूसरे विकल्प पर हो जाता है तब भी गठित पंचायत संस्थाओं का अधिकार निवर्तमान प्रतिनिधियों को मिल सकेगा.

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ये प्रतिनिधि अगले चुनाव तक बदले हुए पद नाम के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकते हैं. बिहार में पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल दरअसल 15 जून को समाप्त हो रहा है लेकिन कोरोना की स्थिति को देखते हुए समय पर चुनाव करा पाना संभव नहीं दिख रहा है. विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग पर जिस तरीके से सवाल खड़े हुए हैं वैसे में बिहार में पंचायत चुनाव कराना संभव भी नहीं है. उत्तर प्रदेश में हाल में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में जिस तरीके से ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का दायरा बढ़ता दिखा वैसे में पंचायत चुनाव को इसकी एक मुख्य वजह माना जा रहा है.

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बिहार में पंचायत कार्यकाल समाप्त होने पर क्या किया जाए इसे लेकर राज्य का पंचायती अधिनियम मौन है. झारखंड में त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव राज संस्थाओं का कार्यकाल 2020 में ही समाप्त हो गया. कोरोना के कारण वहां चुनाव भी नहीं हुए. इस साल जनवरी में एक अधिसूचना जारी कर पुराने निर्वाचित प्रतिनिधियों को ही अधिकार सरकार की तरफ से दे दिया गया है, इसके तहत गठित पंचायत के मुखिया को कार्यकारी समिति का प्रधान बनाया गया है. झारखंड में प्रधान कार्यकारी समिति पंचायत समिति कर दिया गया.

इसी तरह जिला परिषद के अध्यक्ष को प्रधान कार्यकारी समिति जिला परिषद बनाया गया है, इन सभी संस्थाओं में सरकारी प्रतिनिधियों के तौर पर ही व्यवस्था कायम रखी गई है. झारखंड में नई व्यवस्था का कार्यकाल 6 महीने तक रखा गया है. बिहार में अगर पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव नहीं होता है, ऐसे में झारखंड की तर्ज पर कार्यकाल बढ़ाया जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. सभी विकल्पों पर सरकार विचार कर रही है. बिहार के पंचायती राजमंत्री सम्राट चौधरी  की मानें तो फिलहाल सभी राज्यों की परिस्थितियों पर विचार किया जा रहा है और सरकार के स्तर पर है निर्णायक फैसला लिया जाएगा.

साभार – News 18

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