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कोरोना महामारी ने भारत के करोड़ों लोगों को गरीबी में धकेल दिया है। दरअसल, कोविड-19 को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन से लाखों श्रमिकों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। इससे उनकी बचत खत्म हो गई है और वो पाई-पाई के मोहताज हो गए हैं। परिवार का खर्च चालने के लिए कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ रहा है।

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अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना संकट की सबसे बड़ी मार गरीबों पर पड़ी पड़ी है। पिछले साल मार्च से अक्तूबर 2020 के बीच इससे 23 करोड़ गरीब मजदूरों की कमाई 375 रुपये की न्यूनतम मजदूरी से भी काफी कम हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी इलाकों में गरीबी 20 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में 15 फीसदी तक बढ़ गई है। कोरोना की दूसरी लहर के बाद गरीब वर्ग की हालत और खराब होने की आशंका जताई जा रही है।

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सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने सोमवार को कहा कि देशभर में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच लागू लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों के चलते बेरोजगारी दर चार महीने के उच्च स्तर 8 फीसदी पर पहुंच गई। आंकड़े के अनुसार राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 7.97 प्रतिशत पहुंच गयी है। शहरी क्षेत्रों में 9.78 प्रतिशत जबकि ग्रामीण स्तर पर बेरोजगारी दर 7.13 प्रतिशत है। इससे पहले, मार्च में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 6.50 प्रतिशत थी और ग्रामीण तथा शहरी दोनों जगह यह दर अपेक्षाकृत कम थी।

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मुंबई स्थित ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड के अर्थशास्त्री निखिल गुप्ता के अनुसार, लोगों की घरेलू बचत दिसंबर की तिमाही में जीडीपी के 22.1% तक गिर गई, जो पिछले साल जून में समाप्त तीन महीनों में 28.1% थी। वहीं, पूरे साल में भारत की बचत वृद्धि अमेरिका, ब्रिटेन और जापान से पीछे आ गई है।

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प्रवासी मजूदर कर्ज लेने को मजबूर

बिहार से मुंबई में काम कर रहे प्रवासी मजूदरों का कहना है कि लॉकडाउन लगने के बाद से उनकी कमाई बिल्कुल खत्म हो गई है। ऐसे में वो अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कर्ज लेने को मजबूर हैं क्योंकि उनके पास बचत के नाम पर अब कुछ नहीं बचा है।

Input – Hindustan

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