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किसी भी अच्छी सिनेमा के लिए लोग मुख्य अभिनेता अभिनेत्री को श्रेय देते हैं, लेकिन एक अच्छी फिल्म में हर कलाकार का किरदार अहम होता है. अच्छे कलाकार को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उसे कितनी देर स्क्रीन पर बिताने हैं. 5 मिनट के रोल में भी ये अभिनेता फिल्म में जान डाल सकते हैं. भारतीय सिनेमा ने ऐसे कई अभिनेता दिए हैं, जो कभी मुख्य तो ना रहे लेकिन उनकी मौजूदगी ने सबका ध्यान खींचा.

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आज हम ऐसे ही कुछ सितारों की एक सूची आपके लिए लेकर आए हैं, जो अपने दौर की लगभग हर फिल्म में देखे गए. लोग तो यहां तक कहते हैं कि एक दौर में इनके बिना कोई फिल्म बनती ही नहीं थी. ये सिर्फ़ हिंदी फिल्मों के अभिनेता नहीं बल्कि अलग-अलग भाषाओं की फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता हैं.

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1. मेहर मित्तल

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भले ही मेहर मित्तल साहब हिंदी सिनेमा का हिस्सा ना हों लेकिन एक सच्चे सिनेमा प्रेमी के लिए इस नाम को किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है. मित्तल साहब पंजाबी सिनेमा के कॉमेडी किंग कहे जाते थे. एक समय था जब कोई भी पंजाबी फिल्म इनके बिना पूरी नहीं मानी जाती थी. पंजाब बठिंडा के एक गांव में 1935 को जन्में मेहर मित्तल ने करीब 300 फिल्मों और कई नाटकों में अभिनय किया.

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2. ब्रह्मानंदम

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जब साउथ फिल्मों की हिंदी डबिंग का चलन शुरू हुआ तो ये दक्षिणी भाषा की फिल्में हिंदी भाषियों को भी खूब भाने लगीं. ऐसे में जो हिंदी भाषी लोग साउथ के फिल्म स्टार्स से अनजान थे. उन्होंने इन स्टार्स से पहले उस सहकलाकर तथा कॉमेडीयन को पहचाना जो साउथ की हर फिल्म में दिख जाया करता था. ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा कि एक समय साउथ की अधिकार फिल्में इनके बिना नहीं बनती थीं.

ब्रह्मानंदम को उनकी बेहतरीन एक्टिंग के लिए पांच नंदी अवॉर्ड, फिल्‍म फेयर बेस्‍ट कॉमेडियन अवॉर्ड (तेलुगू) तथा बेस्‍ट कॉमेडियन के लिए सिनेमा अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है.

3. जॉनी लीवर

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आंध्र प्रदेश के एक गरीब परिवार का लड़का जॉनी अपना और अपने परिवार का पेट पालने मुंबई आया. तरह तरह के काम किए. फिल्मीं अभिनेतओं की नकल करते हुए सड़क पर पेन बेचे, हिंदुस्तान लीवर कंपनी में अपने पिता के साथ मजदूरी की. इसी हिंदुस्तान लीवर कंपनी के नाम से जॉनी को नाम मिला जॉनी लीवर. आगे जॉनी लीवर बॉलीवुड के वो लीवर बन गए, जिसके बिना हिंदी सिनेमा का सांस लेना मुश्किल हो गया.

वो सुनील दत्त थे जिन्होंने जॉनी के प्रतिभा को पहचाना और पहली बार दर्द का रिश्ता फिल्म में इन्हें ब्रेक दिया. एक पक्षी को खुले आसमान के सिवा और चाहिए ही क्या. जॉनी लीवर को उनका आसमान मिल गया और इसके बाद उन्होंने ऐसी उड़ान भरी कि फिर दोबारा कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. 350 से ज़्यादा फिल्मों में काम कर चुके जॉनी लीवर को उनके अभिनय के लिए 13 बार फिल्म फेयर अवार्ड मिल चुका है.

4. अमरीश पुरी

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बॉलीवुड में एक समय ऐसा था जब खलनायक के नाम पर एक ही चेहरा सामने आता था और वो चेहरा था अमरीश पुरी साहब का. 22 जून 1932 को पंजाब में जन्में अमरीश पुरी ने अपने अभिनय से लोगों के दिल में घर कर लिया. वह अपने बड़े भाई मदन पुरी की तरह एक सफल अभिनेता बनना चाहते थे और उनकी यही चाह उन्हें मुंबई तक ले आई. रंगमंच से जुड़े थे, अभिनय की समझ थी.

इस आधार पर उन्हें लगा कि वह सिनेमा में एंट्री पा जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वह अपने पहले ही स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गए. लेकिन पुरी साहब ने हार नहीं मानी और रंगमंच से नाटककार सत्यदेव दुबे के लिखे नाटकों पर पृथ्वी थिएटर में काम करते हुए अपने अभिनय को निखारते रहे. इन्हीं नाटकों ने उन्हें टीवी विज्ञापनों तक पहुंचाया. 

इसके बाद तो उनका फिल्मी सफर ऐसे शुरू हुआ कि उन्होंने सफलता के शिखर को छू कर ही दम लिया. रंगमंच पर अपने बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया. उन दिनों इस पुरस्कार ने पुरी साहब की बहुत हिम्मत बढ़ाई थी. 1971 में अमरीश पुरी को प्रेम पुजारी फिल्म में एक छोटा सा किरदार मिला.

हालांकि, उन्हें सिनेमाई पर्दे पर पहचान मिली फिल्म रेशमा और शेरा से. अमरीश पुरी ने अपने करियर में 400 से ज़्यादा फिल्में कीं. 80 के दशक की लगभग हर फिल्म में अमरीश पुरी दिख जाया करते थे. एक तरह से दर्शकों को इनके अभिनय की लत लग चुकी थी. अमरीश पुरी ने अपने अभिनय के लिए कई फिल्म फेयर अवार्ड जीते.

5. निरूपा रॉय

निरूपा रॉय

निरूपा रॉय को अगर सिनेमा की मां कहा जाए तो गलत नहीं होगा. अमिताभ बच्चन भले ही तेजी बच्चन के बेटे हों, लेकिन फिल्मीं दुनिया में उनकी मां निरूपा रॉय को ही माना गया. किसी भी अभिनेत्री ने इतनी बार बच्चन साहब के साथ नायिका का किरदार नहीं निभाया होगा जितनी बार निरूपा रॉय ने उनकी मां का किरदार निभाया.

साल 1931 में एक गुजराती परिवार में जन्मीं कोकिला किशोरचंद्र बलसारा की 15 साल में कमल रॉय से शादी हो गई. 1946 में रनकदेवी नामक गुजराती फिल्म से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद कोकिला किशोरचंद्र बलसारा बन गईं निरूपा रॉय. एक समय ऐसा था जा जब हर फिल्म में मां का किरदार इन्हीं के पास होता था. इसी तरह इन्होंने लगभग 300 फिल्मों में अभिनय किया.

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