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रोटी नहीं मिला तो, सुखा आटा खाकर पेट भरा, आज अमेरिका में साइंटिस्ट है भास्कर, कहानी है प्रेरणादायक

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इंसान अपनी मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल कर सकते है. यह लाइन गढ़चिरौली महाराष्ट्र राज्य के एक आदिवासी व्यक्ति भास्कर हलामी पर सटीक बैठता है . भास्कर हलामी को कभी दो वक्त की रोटी नसीब में होता था, लेकिन आज वह अमेरिका में वैज्ञानिक है. काफी मेहनत और कड़ी परिश्रम करके उसने ये मुकाम हासिल कर लिया है.

Credit : India times

यह कहानी कुखेदा तहसील के चिरचारी गांव के आदिवासी समाज में रहने वाले भास्कर हलामी की है. जो अपनी मेहनत से आदिवासी समाज से अमेरिका तक पहुंच गए. अमेरिका मे वे Sirnaomics Inc नामक बायोफार्मास्युटिकल कंपनी के रिसर्च ऐड डेवलपमेंट में सीनियर साइंटिस्ट के पद पर तैनात है. यह कंपनी जेनेटिक मेडिसिन पर शोध करती है. भास्कर ने बताया कि उनके पिता सातवीं तक पढ़े थे.

उनको कसानसुर तहसील की नौकरी मिली जिसेके बाद भास्कर का पूरा परिवार वही जाकर बस गया. भास्कर अपनी प्रारंभिक शिक्षा कक्षा 1 से 4 तक के आश्रम कसानसुर स्कूल से पढ़ाई की. इसके बाद स्कॉलरशिप परीक्षा पास करके गवर्मेंट विद्या निकेतन केलापुर यावतमल में दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की. भास्कर ने बताया कि एक समय ऐसा था, कि उनको दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होता था. तो वह चावल के आटे को पानी में उबालकर पेट भरते थे.

भास्कर चिरचारी गांव से पहले साइंस ग्रेजुएट मास्टर की डिग्री के साथ पीएचडी करने वाला वाले पहले छात्र थे. भास्कर के पिता उनके पढ़ाई के लिए कोई कसर नहीं छोड़े. भास्कर ने गढ़चिरौली से B. Sc किया. उसके बाद नागपुर के Institute of Science से M. Sc की पढ़ाई की और 2003 में नागपुर के लक्ष्मीनारायण इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बतौर प्रोफेसर की नौकरी मिली. भास्कर MPSC परीक्षा भी पास की . भास्कर का सपना था कि वह शोध करना चाहते थे फिर उन्होंने अमेरिका के टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी से PHD पूरी की.

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