भारत में ट्रेनों लेट होना कोई खास नहीं बल्कि बहुत ही नार्मल बात है आपलोग देखते ही होंगे की अक्सर ट्रेन अपने टाइम से लेट पर ही खुलती है | और इसके चक्कर में हमें कुछ न कुछ गलत हो जाता है जैसे मान लीजिये हमें कही डॉक्टर के पास ही जाना है या किसी एग्जाम फिर कोई इंटरव्यू हो उसमे जाना हो तो हमलोग एक दिन पहले से ही वहां उपस्थित हो जाते है |
हमें कही न कही दर रहता है जो कही ट्रेन लेट होने की वजह से हम वहां सही समय पर पंहुच पाएंगे की नहीं इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे को एक शिकायतकर्ता को 30 हजार रुपए हर्जाना देने को कहा है, जिसकी जम्मू से श्रीनगर की फ्लाइट अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस लेट हो जाने की वजह से छूट गई थी। यह ट्रेन 4 घंटे लेट थी।
मुआवजे का आदेश मूल रूप से जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, अलवर द्वारा पारित किया गया था और इसके बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली ने भी इस मुहर लगाई थी। लेकिन नॉर्दन रेलवे ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने फैसला सुनाया।
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नॉर्दन रेलवे को 15 हजार रुपए टैक्सी खर्च के तौर पर, 10 हजार रुपए टिकट खर्च और 5 हजार रुपए मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी खर्च के रूप में देने होंगे। ट्रेन लेट होने की वजह से शिकायतकर्ता की फ्लाइट छूट गई थी। उसे टैक्सी से श्रीनगर जाना पड़ा और हवाई टिकट के रूप में 9 हजार रुपए का नुकसान हुआ। उसे टैक्सी किराये पर 15 हजार रुपए खर्च करने पड़े। इसके अलावा डल झील में शिकारा की बुकिंग के 10 हजार रुपए की हानि हुई।
बेंच ने कहा, ”ये प्रतिस्पर्धा और जवाबदेही का समय है। यदि सरकारी परिवहन को जीवित रहना है और प्राइवेट प्लेयर्स से मुकाबला करना है तो उन्हें अपने सिस्टम और कार्य संस्कृति को सुधारना होगा। नागरिकों और यात्रियों को प्राधिकरण/प्रशासन की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है।
किसी को तो जवाबदेही लेनी पड़ेगी। उसने कहा की रेलवे को जवाब देना होगा की ये ट्रेन कहा और कैसे लेट हो गयी | फिर इसका जवाब देने में रेलवे विफल रहा फिर उसके बाद क्या कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया बताया की हर यात्री का समय महतवपूर्ण रहता है | इसी को नज़र में रखते हुए इस यात्री को रेलवे को ३० हजार रुपये हर्जाना के तौर पर देना होगा |